जब रावण युद्ध में घायल होकर मरणासन्न था तो भगवान राम की आज्ञानुसार लक्ष्मण रावण के निकट गया और उसे कहा कि कुछ नीति की बात बताओ।
रावण ने कहा कि मैं धर्म के मर्म को जानता हूं, परन्तु मेरे भीतर वह क्षमता नहीं कि मैं धर्म के द्वारा स्वयं को अनुशासित कर सकूं, क्योंकि मेरी मृत्यु सन्निकट है फिर भी मैं कुछ नीति की बात तुम्हें बताता हूं।
रावण कहता है कि लक्ष्मण कभी भी अच्छा काम कल पर न छोडऩा। मैं स्वर्ग तक सोने की सीढ़ी बनाना चाहता था। खारे समुद्र के पानी को मीठा करना चाहता था, उससे युग-युग तक लोग मेरी कीर्ति को गाते कि रावण कैसा विद्वान रहा होगा, जिसने समुद्र के खारे जल को मीठा कर दिया। मैंने इन कार्यों को कल पर छोड़ दिया।
अब मुझमें वह क्षमता शेष नहीं रही कि मैं ऐसा कर सकूं, क्योंकि मेरे कुल में तो कोई दीपक जलाने वाला भी नहीं रहा। यदि मैं इस कार्य को कल पर न छोड़ता तो मुझे निश्चित सफलता मिलती।
इसलिए कहता हूं कि अच्छा और हितकारी कार्य कल पर न छोड़े। धर्म पर चले। धर्म भी उसी की रक्षा करता है, जो धर्म की रक्षा करता है। अपने जीवन में ज्ञान को उतारे तो हमारे जीवन में निश्चित रूप से प्रकाश होगा। इसी से समाज का उद्धार होगा।