नयी दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र के तीन लाख करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ दर्ज करने का हवाला देते हुये शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के कारण बैंकिंग क्षेत्र में बदलाव आया जबकि वंशवादी दलों के प्रभुत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) ने बैंकों का इस्तेमाल अपने ‘परिवार कल्याण’ के लिए किया। इसके विपरीत, हमारी सरकार ने ‘जन कल्याण’ के लिए बैंकों का लाभ उठाया है और हमारी सरकार ने व्यापक और दीर्घकालिक सुधारों के माध्यम से बैंकिंग क्षेत्र में संप्रग के पापों का प्रायश्चित किया।
श्रीमती सीतारमण ने यहां एक्स पर एक के बाद एक कुल चार पोस्ट कर बैंकिंग क्षेत्र के बारे में मोदी सरकार द्वारा किये गये कार्याें का विवरण दिया। उन्होंने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र को देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। हाल ही में भारत के बैंकिंग क्षेत्र ने 3 लाख करोड़ रुपये के पार अपना अब तक का सबसे अधिक शुद्ध लाभ दर्ज करके एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह 2014 से पहले की स्थिति के बिल्कुल विपरीत है, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र को खराब ऋणों, निहित स्वार्थों, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के दलदल में बदल दिया था।
एनपीए संकट के ‘बीज’ कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के दौर में ‘फोन बैंकिंग’ के ज़रिए बोए गए थे, जब संप्रग नेताओं और पार्टी पदाधिकारियों के दबाव में अयोग्य व्यवसायों को ऋण दिए गए थे। संप्रग के शासन में बैंकों से ऋण प्राप्त करना अक्सर एक ठोस व्यवसाय प्रस्ताव के बजाय शक्तिशाली संबंधों पर निर्भर करता था। बैंकों को इन ऋणों को स्वीकृत करने से पहले उचित परिश्रम और जोखिम मूल्यांकन की उपेक्षा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) और संस्थागत भ्रष्टाचार में भारी वृद्धि हुई। कई बैंकों ने अपने खराब ऋणों को ‘एवरग्रीनिंग’ या पुनर्गठन करके छिपाया और रिपोर्ट करने से परहेज किया।
उन्होंने कहा “ हमारी सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा संपदा गुणवत्ता समीक्षा जैसे कई उपायों ने एनपीए के छिपे हुए पहाड़ों का खुलासा किया और उन्हें छिपाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अकाउंटिंग तरकीबों को खत्म कर दिया जबकि कांग्रेस के समय में बेपरवाह और अविवेकपूर्ण तरीके से दिए गए ऋणों ने ‘ट्विन बैलेंस शीट’ की शर्मनाक विरासत को जन्म दिया, जो हमें 2014 में विरासत में मिली। इस समस्या ने देश को विकास के लिए जरूरी ऋण प्रवाह से वंचित कर दिया। बैंक नए उधारकर्ताओं, खासकर एमएसएमई को ऋण देने में अनिच्छुक हो गए, जो आर्थिक विकास और रोजगार सृजन की रीढ़ हैं। ऋण वृद्धि एक दशक के निचले स्तर पर धीमी हो गई। बैंकों को उच्च प्रावधान के कारण भारी नुकसान और पूंजी का क्षरण भी झेलना पड़ा।”
उन्होंने कहा कि बैंकों द्वारा 2014 से पहले दिए गए ऋणों के लिए अपने एनपीए का पारदर्शी रूप से खुलासा करने के बाद, वित्त वर्ष 2017-18 में सरकारी बैंकों का सकल एनपीए 14.6 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गया। रिजर्व बैंक के दो पूर्व गवर्नरों ने संप्रग शासन द्वारा छोड़ी गई व्यवस्था में गिरावट के स्तर को खुले तौर पर उजागर किया है। उन्होंने कहा कि राहुलगांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भाग लेने वाले रघुराम राजन ने संप्रग काल के दौरान एनपीए संकट को “अतार्किक उत्साह की ऐतिहासिक घटना” बताया। इसी तरह, पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि संप्रग के तहत पीएसबी के कामकाज में “नौकरशाही की जड़ता और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण एक स्थायी कमी” थी।
उन्होंने कहा कि एनपीए संकट ने उन करोड़ों महत्वाकांक्षी भारतीयों के सपनों को पूरा करने के लिए आवश्यक ऋण को रोक दिया, जो स्टार्ट-अप स्थापित करना चाहते थे और छोटे व्यवसायों का विस्तार करना चाहते थे। संप्रग ने लुटियंस दिल्ली में वंशवाद और दोस्तों का पक्ष लिया, जबकि भारतीयों के एक बड़े हिस्से को मझधार में छोड़ दिया। जब मोदी सरकार ने कार्यभार संभाला, तो ये दोस्त अभियोजन के डर से भाग गए। जो लोग अब बैंकों के राष्ट्रीयकरण का श्रेय ले रहे हैं, उन्होंने देश के गरीब और मध्यम वर्ग को दशकों तक बैंकिंग सुविधा से वंचित रखा, जबकि उनके नेता और सहयोगी भ्रष्टाचार की सीढ़ियाँ चढ़ते रहे।