सहारनपुर। वक्त के साथ समाज और लोगों की सोच भी बदल रही है। अब बेटियों को लोग बोझ नहीं मानते हैं और बेटों की तरह उनका पालन-पोषण, शिक्षा और खेलों के प्रति प्रेरित कर रहे हैं।
सहारनपुर मंडल के तीन जिलों सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली में ब्लाकों की संख्या 25 है और तीन शहरी क्षेत्र हैं। दिलचस्प और प्रेरणादायक बात यह है कि सहारनपुर का ब्लाक साढ़ौली कदीम यू तो पिछड़ा क्षेत्र माना जाता है लेकिन बेटियों को लेकर वहां की सोच बहुत ही प्रेरणास्पद और सराहनीय है। वहां प्रति हजार पर 146 बेटियों ने अप्रैल से अगस्त -2003 के बीच जन्म लिया यानि 630 बेटे जन्में तो बेटियां 659 जन्मीं।
यह अलग बात है कि पूरे सहारनपुर मंडल में कहीं भी इस तरह का रूझान अभी नहीं है। लेकिन जो रास्ता साढ़ौली कदीम ने दिखाया है हो सकता है कि आने वाले समय में दूसरे स्थानों पर भी बेटियां बेटों से ज्यादा जन्में या उनके बीच ज्यादा अंतर ना रहे। सहारनपुर के बलिया खेड़ी का लिंगानुपात 912 है। वहां 363 बेटों ने और 331 बेटियों ने जन्म लिया। देवबंद ब्लाक का लिंगानुपात 928 प्रति हजार है। वहां 651 बेटों ने और 604 बेटियों ने जन्म लिया।
ब्लाक गंगोह का लिंगानुपात 938 है। वहां 775 बेटों ने और 727 बेटियां जन्मीं। मुजफ्फराबाद ब्लाक का लिंगानुपात 822 है। वहां 865 बेटे और 711 बेटियां जन्मीं। नांगल का लिंगानुपात प्रति हजार 848 है। वहां 553 बेटों ने तो बेटियों की संख्या 469 रही। नकुड़ में लिंगानुपात 909 है। वहां 438 बेटों ने जन्म लिया तो बेटियों की संख्या 398 रही। ब्लाक पुवारकां में 659 है। वहां 446 बेटों ने जन्म लिया तो बेटियों की संख्या 294 रही। रामपुर मनिहारान का लिंगानुपात 969 प्रति हजार है। वहां 191 बेटे और 185 बेटियां जन्मीं। सरसावा में लिंगानुपात 929 है। वहां 551 बेटें और 512 बेटियां जन्मीं। शहरी क्षेत्र का लिंगानुपात 946 है। वहां14924
बेटों ने और 14124 बेटियों ने जन्म लियां। सहारनपुर जनपद का लिंगानुपात प्रति हजार 930 है। यानि कि वहां बेटों और बेटियों में 70 का अंतर है। मुजफ्फरनगर जनपद में लिंगानुपात 921 है। वहां कुल 16002 बेटे जन्में और 14738 बेटियों ने जन्म लिया। शामली जनपद का लिंगानुपात 952 है। यानि यहां की स्थिति मुजफ्फरनगर और शामली से बेहतर है।
वहां इस साल अप्रैल से अगस्त माह तक 8524 बेटें जन्में तो बेटियों की संख्या भी कुछ ज्यादा पीछे नहीं रहीं। 8113 बेटियों ने शामली जनपद में जनपद में जन्म लिया।सहारनपुर मंडल की सहायक निदेशक स्वास्थ्य डा. ज्योत्सना वत्स कहती हैं कि आधुनिकता के साथ-साथ समाज की सोच लड़कियों को लेकर सकारात्मक रूप से बदली है। ये बेहतर नतीजे इस बात का प्रमाण है कि लोग अब गर्भ में बेटियों को भ्रूण की हत्या नहीं कर रहे हैं। उन्हें बेटों की तरह ही अब बेटियां भी अब उन्हीं की तरह स्वीकार है।