सुगन्धा और विनय के बीच संदेह की दीवार खड़ी हो गई। संदेह विनय को हुआ, ऐसे प्रकरण में पुरुष पत्नी पर शक करेगा ही। सारी कॉलोनी में यह चर्चा जोरों पर चल रही थी कि सुगन्धा और राजेंद्र प्रसाद में अनैतिक संबंध चल रहे हैं। कॉलोनी वाले इस बात को हवा देकर मजा ले रहे थे। दोनों एक दूसरे के घरों में घंटों बैठे रहते। कॉलोनी वाले कहते विनय ने सुगन्धा को खुली छूट दे रखी है। सुगन्धा विनय पर भारी पड़ती है। इसलिए विनय कुछ नहीं कर पाते हैं। इसी छूट का फायदा राजेंद्र प्रसाद उठा रहे हैं।
लोगों में तो इससे बढ़कर चर्चा थी कि विनय सुगन्धा को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं। अत: अपनी शारीरिक संतुष्टि के लिए सुगन्धा राजेंद्र प्रसाद के नजदीक आई। कभी-कभी घंटों वह राजेंद्र प्रसाद के पास बैठी रहती है और राजेंद्र प्रसाद भी उसके घर घंटों बैठे रहते हैं जब विनय घर पर नहीं होता। विनय के कोई संतान नहीं थी। जबकि शादी हुए 10 साल से ऊपर हो गये थे।
राजेंद्र प्रसाद कौन है। आईये उनके बारे में आपको जानकारी दे दूं। राजेंद्र प्रसाद और कोई नहीं सुगन्धा और विनय के पड़ोसी थे जो त्रिभुवन गुप्ताजी के मकान में रहते थे। त्रिभुवन गुप्ता और उनके पड़ौसी होने के नाते अच्छे पारिवारिक संबंध थे जब भी फुरसत मिलती एक दूसरे के घर प्राय: आया जाया करते थे। तब वहां राजेंद्र प्रसाद से परिचय हुआ। राजेंद्र प्रसाद बैंक में कार्यरत थे। अकेले रहते थे उनका परिवार उज्जैन में रहता था। राजेंद्र प्रसाद से परिचय क्या हुआ। वह परिचय घनिष्ठता में बदल गया। कुछ ही दिनों में सुगन्धा से उन्होंने अपना परिचय बढ़ा लिया।
कभी-कभी सुगन्धा उन्हेें खाने पर बुलाने लगी। थोड़े ही दिनों में वे ऐसे घुल मिल गये कि जैसे घर के सदस्य हों। सुगन्धा उनके पास बैठकर खूब बातें किया करती थी। यह सोचकर विनय चुप हो जाया करता था। यह आधुनिक समय है यहां औरत और पुरुष में हंसी ठहाके सब चलता है मगर उनके बीच हंसी ठहाके और बातचीत इतनी गहराई तक पहुंच गई कि उन दोनों के संबंधों को लेकर कॉलोनी वाले उंगलियां उठाने लगे। राजेंद्र प्रसाद को जब समय मिलता चले आते कुछ दिनों से सुगन्धा प्राय: उन्हें खाने पर अधिक बुलाने लगी।
विनय सब जानतेे समझते हुए भी चुप रहता था। सुगन्धा को इस संबंध में वह कुछ कहता तब सुगन्धा डांटती हुई कहती अरे एक आदमी को खिलाने से हम गरीब नहीं हो जाएंगे। ऐसे अवसरों पर वह प्राय: चुप हो जाता था जब भी राजेंद्र प्रसाद घर आते उनके बीच कोई व्यवधान वह नहीं करता, कोई बहाना बनाकर विनय बाहर निकल जाता। सड़कों पर निरुद्देश्य दो तीन घंटे तक घूमता रहता। मगर राजेंद्र प्रसाद के ठहाके उसके भीतर जब जहर घोलने लगे तब अंदर ही अंदर वह कुंठित हो गया इस बात को लेकर पति-पत्नी के बीच तनाव बढऩे लगा। लोग हवा देने लगे।
ऐसे ही एक दिन श्रीमती शीला गर्ग आकर बोली- भाई साहब, यह मैं क्या सुन रही हूं?
‘क्या सुन रही हैं आप? विनय ने मिसेस गर्ग से सवाल पूछा।
‘यही सुगन्धा और राजेंद्र प्रसाद के बीच कुछ चल रहा है?
‘क्या चल रहा है जरा स्पष्ट बतायेंगी।
अब भाई साहब आप मुझसे पूछ रहे हैं। ‘जरा संकोच करती हुई श्रीमती मिसेस गर्ग बोली।
‘अब आपसे नहीं पुछूंगा तो किससे पुछूंगा
‘अरे भाई साहब दोनों के ‘बीच पति-पत्नी और वो फिल्म का चक्कर चल रहा है। श्रीमती गर्ग ने स्पष्ट करते हुए कहा-आप दोनों के बीच में राजेंद्र प्रसाद वो बने हुए हैं। भाई साहब सुगन्धा के कदम और आगे बढ़े उसके पहले उसके कदम रोक दे।
‘आप क्या कहना चाहती हैं।
‘अरे भाईसाहब दोनों में रोमांस चल रहा है।
‘मिसेस गर्ग आपने देखा है क्या। विनय ने पूछा। ‘लोग कह रहे हैं?Ó मिसेस गर्ग घबराती हुई बोली।
‘लोगों के कहने से अपने मान लिया मिसेस गर्ग आपको सुगन्धा जैसी सती सावित्री पत्नी पर आरोप लगाते शर्म नहीं आती है।
‘अरे भाई साहब आप तो नाराज हो गये मैं तो आपको समझाने आई थी?
‘मैं कोई बच्चा नहीं हूं जो आप मुझे समझाने आई। नाराजी से उसने कहा।
‘भाईसाहब जब सिर से पानी गुजर जायेगा तब कुछ नहीं होगा। रोक लीजिए उनके रोंमांस को। कहकर मिसेस गर्ग बाहर निकल गईं जैसे ही वह बाहर निकली सुगन्धा का आना हुआ। उसने श्रीमती गर्ग को जाते हुए देख लिया था उसके चेहरे पर क्रोध की रेखाएं स्पष्ट दिख रही थीं। विनय से बोली ये शीला गर्ग क्यों आई थी?
‘हम दोनों के बीच आग लगाने के लिए।
‘मतलब?….
‘मतलब यह है सुगन्धा बीच में ही बात काटकर विनय बोला-तुम्हारे और राजेंद्र प्रसाद के बीच जो रोमांस चल रहा है। यह कहने आई थी।
‘दूसरों के चरित्र पर कीचड़ उछालना वहीं औरत कर सकती है जो चरित्र से लूज हो श्रीमती गर्ग..
‘सुगन्धा दूसरों के चरित्र पर लांछन लगाने से पहले खुद के गिरेबान मेंं झांक लों बीच में ही बात काटकर विनय ने कहा।
‘आपका मतलब यह है कि मैं चरित्रहीन हूं।
‘यह मैं नहीं कॉलोनी वाले तुम्हें समझ रहे हैं कि तुममें और राजेंद्र प्रसाद के बीच अवैध संबंध हैं।
‘और तुमने मान लिया।
‘देखों सुगन्धा।
‘मुझे मत समझाओ? बीच में ही बात काटकर सुगन्धा बोली। आप भी यही कहेंगे मेरा और राजेंद्र प्रसाद के बीच कोई संबंध है।
‘अभी तक तो नहीं मान रहा था। मगर कुछ दिनों से देख रहा हूं कि तुम दोनों के बीच कोई खिचड़ी जरूर पक रही है। तुम दोनों एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते हो।
‘विनय तुम्हें शक हो गया है और शक का इलाज लुकमान हकीम के पास भी नहीं है। विनय विश्वास रखो हमारे दोनों के बीच ऐसा कोई संबंध नहीं है। विचार मिलते हैं इसलिए हसंकर बात कर लेते हैं।
‘ये ही विचार तुम दोनों को नजदीक लाये हैं। विनय बोला और जब स्त्री और पुरुष नजदीक आ जाते है तब वे एक दूसरे पर समर्पण कर देते हैं। यह समर्पण भावना मैंने कई अवसरों पर देखी है फिर भी आगे रहकर तुम्हें खुली छूट दे रखी है। इसी छूट का परिणाम है कि आज कॉलोनी वाले तुम पर उंगलियां उठा रहे हैं। बोलो सुगन्धा तुम्हारे और राजेंद्र प्रसाद के बीच में संबंध है कि नहीं।
उस दिन उन दोनों के बीच काफी तू-तू मैं-मैं हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि सुगन्धा भीतर ही भीतर घुटकर रह गई दोनों के बीच संदेह की दीवार उठ गई।
उनके संबंधों को लेकर कॉलोनी वाले और ज्यादा छीटाकशी करने लगे। सुगन्धा की मजबूरी यह थी कि राजेंद्र प्रसाद जी से कैसे कहे कि उनसे अब मिलना कम करे। सुगन्धा ने त्रिभुवन गुप्ता के यहां भी जाना कम कर दिया। मिसेस गुप्ता से भी आंगन में खड़े होकर बात कर लिया करती थी। कभी वह मिसेस गुप्ता के यहां घंटों बैठी रहती थी। राजेंद्र प्रसाद से भी वहां बातें किया करती थी। राजेंद्र प्रसाद से इस तरह से बचकर रहने लगी कि उसे एहसास न हो। कभी-कभी औपचारिक बातें करके घर के काम का बहाना करके चली आती थी। मिसेस गुप्ता के यहां बैठकर ही वह राजेंद्र प्रसाद के निकट आई थी। वहां वह खुलकर अपनी बात कर सकती थी। मगर जबसे विनय को संदेह हुआ तब से अपने आप को घर तक सीमित कर दिया। ऐसे में एक दिन मिसेस गुप्ता आकर बोली क्यों सुगन्धा आजकल मेरे घर आना कम क्यों कर दिया मुझसे नाराज हो क्या?
‘नहीं भला मैं क्यों नाराज होऊंगी।
‘तब तुमने आना पहले से कम क्यों कर दिया?
‘देखो मिसेस गुप्ता, तुम यह जानती हो तुम्हारे घर बैठकर मैं राजेंद्र प्रसाद जी से घंटों बातें करती थी। तब कॉलोनी वालों को ऐसा लगा हम दोनों के बीच रोमांस चल रहा है।
‘हां चल रहा है तुम दोनों में रोमांस। हंसती हुई मिसेस गुप्ता बोली।
‘ये तुम कह रही हो मिसेस गुप्ता।
‘हां-हां मेरे घर में ही रोमांस चल रहा है क्या मैं नहीं दखेती हूं। राजेंद्र प्रसाद में तुम्हें ऐसा क्या दिखा जो उनके बहुत नजदीक पहुंच गईं।
‘मिसेस गुप्ता तुमसे मुझे ऐसी आशा न थी। नाराज होती हुई सुगन्धा बोली यही कारण है कि मैं तुम्हारे घर कम आती हूं।
‘मगर तुमने राजेंद्र प्रसाद जी को खूब खाना खिलाया, कॉलोनी वालों का शंका करना स्वाभाविक है। समझाती हुई मिसेस गुप्ता बोली।
‘ठीक है। आप एक काम कर सकती हैं सुगन्धा ने उदासी से कहा राजेंद्र प्रसाद से कह देना अब वे मेरे घर नहीं आयें।
‘प्रेम तूने किया यह बात तू नहीं कह सकती है। अर्थपूर्ण दृष्टि से मिसेस गुप्ता बोली।
‘ठीक है, मैं ही कह दूंगी। सुगन्धा के चेहरे पर नाराजी के भाव थे।
‘ठीक है बाबा कह दूंगी हंसती हुई मिसेस गुप्ता बोली। नाराज मत हो मगर तेरा मन साफ है तब क्यों घबरा रही है? फिर यह तो तुझे बदनाम करने का षड्यंत्र रचा है किसी ने। राजेंंद्र प्रसाद भले ही यहां अकेले रहते हैं मगर वे गृहस्थी वाले हैं। वे ऐसे व्यक्ति नहीं है। मैं तो कहती हूं तुम दोनों में कोई प्रेम संंबंध नहीं है। बस हंसकर बातें कर लेना संदेह का कारण है।
‘मगर इन अफवाहों के कारण विनय को भी संदेह हो गया। वे भी मुझसे नहीं बोलते हैं।
‘मतलब बात यहां तक पहुंच गई। विनय को समझाना पड़ेगा। कहना पड़ेगा तुम्हारी सुगन्धा का मन साफ है किसी पराये मर्द से कोई स्त्री यदि हंसकर बात कर लेती है, इसका मतलब यह नहीं है कि इसका रोमांस से संबंध जोड़ लिया जाए। विनय ने भी इस बात को सच मान लिया। तब तो मामला उलझन भरा हो गया, क्यों सुगन्धा तुझे किसी पर संदेह है कि यह किसकी शरारत हो सकती है।
‘मुझे तो पूरा संदेह श्रीमती शीला गर्ग पर जाता है।
‘ऐसी बात है। इसका एक दिन पता लगा कर रहूंगी। देख मैं यह अफवाह फैलाऊंगी राजेंद्र प्रसाद के रोमांस के कारण सुगन्धा एवं विनय में तकरार हो गई है मिसेस गुप्ता ने यह कहकर समाधान खोजने की कोशिश की।
यह तीर सही निशाने पर बैठा। मिसेस गुप्ता की उड़ाई गई इस अफवाह ने आग में घी का काम किया। एक दिन विनय को साथ लेकर मिसेस गुप्ता कहीं जा रही थी। श्रीमती शीला गर्ग और उसके पति के बीच कुछ वार्तालाप चल रही थी।
‘उन्हें उस वार्तालाप पर शंका हुई यह सुनने के लिए आड़ में खड़े हो गये। श्रीमती गर्ग अपने पति से कह रही थीं-मेरी अफवाह ने कॉलोनी में तहलका मचा दिया।
‘कैसा तहलका? पति ने पूछा।
‘सुगन्धा और राजेंद्र प्रसाद के बीच रोमांस चल रहा है
आगे बोलीं फिर क्या लोगों में कानाफूंसी होने लगी। इस बात को सुगन्धा के पति विनय से भी जाकर मैंने एक दिन कह दी। सचमुच उस दिन मेरी बात का यह असर पड़ा सुगन्धा के विनय के मन में संदेह पैदा हो गया इसका परिणाम यह हुआ कि पति-पत्नी में तकरार हो गई अब सुना है कि उन दोनों के बीच बातचीत बंद है।
‘बहुत बहादुरी का काम किया शीला तुमने। तुम तो पुरुस्कृत करने लायक हो। व्यंग्य भरी मुस्कान से पति ने कहा।
‘सचमुच आप भी इस बात से खुश है। प्रसन्नता से श्रीमती शीला गर्ग बोली।
‘अरे ओ रामायण काल की मंथरा गुस्सा होकर श्री गर्ग बोले। दिन भर इस कॉलोनी की औरतें फालतू रहती हैं न उनके पास काम है न धाम।
रमेश मनोहरा-विभूति फीचर्स