नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के निर्माण में देरी के लिए पंजाब सरकार को फटकार लगाई।
शीर्ष अदालत की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, सी.टी. रविकुमार और सुधांशु धूलिया ने एसवाईएल नहर के निर्माण को लेकर हरियाणा और पंजाब के बीच चल रहे विवाद के मामले की सुनवाई की।
पंजाब सरकार के वकील ने विपक्षी दलों के दबाव और किसानों द्वारा कब्जाई गई जमीन का हवाला देते हुए अदालत को मुश्किलों से अवगत कराया।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में केंद्र को निर्देश दिया है कि वह विवाद पर मध्यस्थता प्रक्रिया पर गौर करे और पंजाब सरकार द्वारा किए गए निर्माण की सीमा को देखने के लिए सर्वेक्षण भी करवाए।
अदालत ने मार्च में केंद्र को इस मामले में मुख्य मध्यस्थ के रूप में समाधान निकालने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का निर्देश दिया था।
इससे पहले जुलाई 2020 को शीर्ष अदालत ने भी दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने को कहा था।
यह संघर्ष 1966 में हरियाणा के पंजाब से अलग होने के बाद 1981 के जल-बंटवारे समझौते से जुड़ा हुआ है।
एसवाईएल नहर के निर्माण के बाद रावी और ब्यास नदियों से दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे की सुविधा होगी। पंजाब ने तटवर्ती सिद्धांतों का हवाला देते हुए जल बंटवारे का विरोध किया था।
इस बात पर सहमति बनी कि दोनों राज्य एसवाईएल नहर में अपने हिस्से का निर्माण करेंगे।
2004 में पंजाब सरकार ने एसवाईएल समझौते को रद्द करते हुए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट (पीटीएए) पारित किया।
2016 में शीर्ष अदालत ने पंजाब सरकार के इस एकतरफा कानून को रद्द कर दिया।
मामले को जनवरी 2024 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।