Monday, November 25, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर में बच्ची से दुष्कर्म के दोषी को सुनाई 30 साल की कठोर कैद

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंदिर परिसर में सात साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के दोषी व्यक्ति को 30 वर्ष कठोर कैद की सजा और उसे एक लाख रुपए पीड़िता देने का आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि दोषी भग्गी ऊर्फ भागीरथ ने मंदिर की पवित्रता की परवाह किए बिना एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण और बर्बर कृत्य किया जो पीड़िता को हमेशा परेशान कर सकता है।

पीठ ने 2018 की दुर्भाग्यपूर्ण और बर्बर घटना के मामले में सोमवार को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि दोषी को 30 साल की वास्तविक सजा पूरी होने से पहले जेल से रिहा नहीं किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने हालाँकि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को संशोधित किया, जिसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 ए बी के तहत सजा को मृत्युदंड से आजीवन कारावास में बदल दिया था।

याचिकाकर्ता-दोषी ने दलील दी थी कि उच्च न्यायालय ने दर्ज किया था कि जिस तरह से अपराध किया गया वह बर्बर और क्रूर नहीं था। उनके वकील ने अदालत के समक्ष दलील देते हुए कहा कि कोई आपराधिक इतिहास नहीं होने के कारण दोषी को न्यूनतम जुर्माने के साथ 20 साल की कठोर कारावास की सजा होगी।

शीर्ष ने कहा, “स्थिति यह है कि उसने (दोषी ने) अपनी वासना को संतुष्ट करने के लिए सात साल की लड़की के साथ दुष्कर्म किया। इसके लिए दोषी पीड़िता को एक मंदिर में ले गया। उसने उस स्थान की पवित्रता की परवाह किए बगैर हुए उसे और खुद को निर्वस्त्र किया और फिर अपराध किया।”

पीठ ने यह भी कहा कि एक बार आईपीसी की धारा 376 ए बी के तहत दोषसिद्धि बरकरार रहने के बाद निश्चित अवधि की सजा 20 साल से कम की अवधि के लिए नहीं हो सकती है।

अदालत ने कहा, “यह देखा गया है कि यदि पीड़िता धार्मिक है तो किसी भी मंदिर में जाने से उसे उस दुर्भाग्यपूर्ण, बर्बर कृत्य की याद आ सकती है (जिसके साथ वह घटना हुई थी।) साथ ही, यह घटना उसे परेशान कर सकती है और उसके भविष्य के विवाहित जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।”

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में कहा कि निचली अदालत द्वारा पोक्सो अधिनियम की धारा 3/4 और 5 (एम)/6 के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता पर कोई अलग सजा नहीं दी गई थी। पीठ ने जुर्माने की रकम एक लाख रुपये तय करते हुए आदेश दिया कि ये राशि पीड़िता को दी जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा, “आईपीसी की धारा 376 एबी के तहत, जब कम से कम 20 साल की कैद की सजा दी जाती है ( जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है) तो दोषी को जुर्माने की सजा भी भुगतनी पड़ती है जो चिकित्सा खर्चों को पूरा करने और पीड़िता का पुनर्वास करने के लिए उचित होगा।”

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय