Wednesday, October 23, 2024

न्यूज एजेंसी को सरकार का प्रोपेगैंडा टूल बताए जाने से बुरा कुछ भी नहींः दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा है कि किसी न्यूज एजेंसी के लिए इससे बुरी बात कुछ नहीं हो सकती है कि उसे सरकार का प्रोपेगैंडा टूल बताया जाए। चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती देने वाली विकीपीडिया की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। आज विकीपीडिया की ओर से कोर्ट को ये सूचित किया गया कि न्यूज एजेंसी के संबंध में जो सूचना संपादित की गई थी उस पेज को हाईकोर्ट के आदेश के बाद हटा दिया गया है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि न्यूज एजेंसी ने सिंगल बेंच के समक्ष जो याचिका दायर किया है उसमें काफी गंभीर आरोप हैं। कोर्ट ने विकीपीडिया से कहा कि आपको न्यूज एजेंसी का विवरण संपादित करने वाले का नाम बताना चाहिए। अगर आप नाम नहीं बताएंगे तो न्यूज एजेंसी की ओर से दाखिल याचिका में उसका पक्ष कैसै जाना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि संसद में अगर किसी विपक्षी दल को ये कहा जाता है कि वो सीआईए का एजेंट है तो ये एक गंभीर आरोप होता है। कोर्ट ने विकीपीडिया से कहा कि आप एक सर्विस प्रोवाइडर हैं, उस पर हमें कुछ नहीं कहना। लेकिन जिसने विवरण संपादित किया है उसे अपना पक्ष रखना होगा।

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बतादें कि 16 अक्टूबर को कोर्ट ने न्यूज एजेंसी को सरकार का प्रोपेगैंडा टूल बताने वाले विकीपीडिया के विवरण संबंधी मामले में कोर्ट के फैसले पर की गई टिप्पणियों वाले पेज को 36 घंटे के अंदर हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने 14 अक्टूबर को न्यूज एजेंसी के सरकार का प्रोपेगैंडा टूल बताने वाले विकीपीडिया के विवरण को संपादित करने वाले के नाम का खुलासा नहीं करने पर आपत्ति जताई थी। सुनवाई के दौरान विकीपीडिया ने कहा था कि विकीपीडिया विवरण संपादित करने वाले का विवरण नहीं बता सकता। ये उसकी निजता की नीति का हिस्सा है।

तब कोर्ट ने कहा था कि अगर आप नाम नहीं बताएंगे तो जिस व्यक्ति ने विवरण संपादित किया है कोर्ट उसका रुख कैसे जान पाएगी। सुनवाई के दौरान न्यूज एजेंसी की ओर से पेश वकील ने कहा था कि विकीपीडिया के पेज में कहा गया है कि जज ने ये धमकी दी है कि वे भारत सरकार को आदेश दे सकते हैं कि विकीपीडिया को देश में बंद कर दिया जाए। इस पर कोर्ट ने विकीपीडिया को देश में बंद कर दिया जाए। इस पर कोर्ट ने विकीपीडिया से कहा कि ये पेज हटाया जाना चाहिए था। आप जज को धमकी नहीं दे सकते हैं। आपको वो पेज हटाना होगा अन्यथा हम आपकी याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे। हम सिंगल जज को भी निर्देश देंगे कि वो आपका पक्ष नहीं सुनें।

आप दुनिया के लिए शक्तिशाली हो सकते हैं लेकिन हम ऐसे देश में रहते हैं जहां कानून का शासन है। कोर्ट ने कहा था कि आप एक सर्विस प्रोवाइडर हैं। आप न्यूज एजेंसी का विवरण संपादित करने वाले का खुलासा कीजिए। आप किसी को बदनाम करने का प्लेटफार्म नहीं हो सकते हैं। इससे आपको सुरक्षा नहीं मिल सकती है। तब विकीपीडिया के वकील ने इस पर निर्देश लेकर सूचित करने के लिए समय देने की मांग की, जिसके बाद कोर्ट ने 16 अक्टूबर को सुनवाई करने का आदेश दिया।

बता दें कि 05 सितंबर को सिंगल बेंच ने विकीपीडिया के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी किया था। जस्टिस नवीन चावला की सिंगल बेंच ने कहा था कि अगर आगे कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं होगा तो हम कड़ाई से निपटेंगे। सिंगल बेंच ने 25 अक्टूबर को अगली सुनवाई की तिथि नियत करते हुए विकीपीडिया के प्रतिनिधि को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था। न्यूज एजेंसी ने आरोप लगाया था कि विकीपीडिया वेबसाइट पर उनके बारे में सूचना दी गई है कि वो सरकार का प्रोपेगैंडा टूल है। इस पर हाईकोर्ट ने विकीपीडिया को आदेश दिया था कि वो इस सूचना को लिखने वाले यूजर का खुलासा करें, लेकिन विकीपीडिया ने यूजर का खुलासा नहीं किया।

सुनवाई के दौरान पूर्व के आदेश का विकीपीडिया की ओर से पालन नहीं होने पर हाईकोर्ट नाराज हो गया और कहा कि अगर आगे भी आदेश का पालन नहीं किया गया तो वो कड़े कदम उठाएगी। न्यूज एजेंसी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि विकीपीडिया ने उसके बारे में अपमानजनक कंटेंट पोस्ट करने की अनुमति दी है। विकीपीडिया में न्यूज एजेंसी का विवरण देते हुए लिखा गया है कि वो सरकार का प्रोपेगैंडा टूल है। इससे न्यूज एजेंसी की छवि खराब हो रही है।

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