आज स्वामी विवेकानन्द जयंती है। इस पुनीत अवसर पर उनके बहुमूल्य वचनों का स्मरण प्रांसागिक होगा।
(1) ज्ञान मनुष्य के अन्तर्निहित है कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता, सभी कुछ हमारे भीतर है।
(2) उठो जागो और तब तक न रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये। जब तुम कोई काम करो तब अन्य किसी बात का विचार ही मत करो, उसे एक उपासना मानो। बडी से बडी उपासना की भांति करो और जब तक पूरी न हो जाये उस समय तक के लिए उसमें अपना सारा तन-मन लगा दे।
(3) कौन सा धर्म ग्रंथ यह कहता है कि महिलाएं ज्ञान और आस्था के लिए सक्षम नहीं है? अत: उनका आदर करो
(4) हम जो कुछ भी हैं, जो भी करना चाह रहे हैं, उसके लिए हम ही उत्तरदायी हैं। उसे पूरा करने की असीम क्षमता है। हम जो कुछ भी हैं यह हमारी भूतकाल में की गई कृतियों का परिणाम है।
(5) जाति प्रथा वेदान्त के धर्म के सर्वथा विरूद्ध है। जाति एक सामाजिक प्रथा है और प्रबुद्ध वर्ग ने सदा ही उसे तोडने का प्रयास किया है।
(6) प्रेम सभी असम्भव दरवाजे खोलता है। प्रेम ब्रह्मांड के सभी रहस्यों का द्वार है।
(7) अपने प्रति आत्महीनता की भावना न रखे, क्योंकि आगे बढने के लिए आवश्यक है कि पहले हमें स्वयं में विश्वास हो।
(8) दान से बढकर कोई धर्म नहीं। सबसे छोटा मनुष्य वह है जिसका हाथ सदा अपनी ओर रहता है।