Tuesday, May 20, 2025

क्या होता है पूजा का मर्म

देवतागण की कोई स्तुति करे न करे तो उनका कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। जो निंदा स्तुति से ऊपर है, वहीं देवता है।

खिले फूल जैसा जीवन देवता के चरणों में समर्पित हो, चन्दन की भांति हम अपने निकट में उगे हुए झाड़-झंखाड़ों को भी सुगन्धित बनाये। दीपक की भांति स्वयं जलकर प्रकाश दें। यह शिक्षण, पूजा, उपचार के द्वारा हमें स्वयं को ही देना होता है, ताकि हम दूसरों के लिए आदर्श बने।

जरा से अक्षत से तो गणेश जी के चूहे का भी पेट नहीं भर सकता, फिर देवता पर अक्षत चढ़ाने का क्या औचित्य? इसका उद्देश्य इतना ही है कि हम अपनी कमाई का, समय का, श्रम का एक अंश नियमित रूप से परमार्थ हेतु लगाते रहें। यदि पूजा उपचार के द्वारा आत्म शिक्षण की बात भुला दी जाये और फल, पुष्प, मिष्ठान चढ़ाकर देवता को फुसलाने का प्रयास करे, तो यह मछली मारने, चिड़िया फंसाने जैसी विडंबना होगी, जो लालच दिखाकर उन्हें शिकार बनाते हैं।

हमें पूजन का मर्म समझना चाहिए। भ्रम जाल में भटकने की अपेक्षा यही ठीक है कि हम जो भी कार्य करें सोच-समझकर उसके मर्म को आत्मसात करके करें।

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