अक्सर देखा गया है कि मां-बाप के प्यार को लेकर भाई-बहनों में बचपन से ही ईर्ष्या घर करने लगती है। वास्तव में इसके लिए दोषी मां-बाप ही होते हैं जो अपने व्यवहार से बच्चों में इस नकारात्मक भावना को बढ़ावा देते हैं। दरअसल मां-बाप को अपने सभी बच्चों से समान प्यार होता है लेकिन बच्चों की अच्छी-बुरी आदतों के अनुरूप मां-बाप के बाहरी व्यवहार में उनके प्रति कुछ अंतर अवश्य दिखाई देता है भले ही उनके मन की भीतरी तहों मेें सभी बच्चों के लिए प्यार गहरा और एक सा होता है।
कोई भी दो व्यक्ति एक सा स्वभाव लेकर पैदा नहीं होते फिर चाहे वे एक ही मां – बाप के जाये बच्चे क्यों न हों। कोई मेहनती व व्यवस्थित होता है और कोई कमजोर व अव्यवस्थित। कोई स्वभाव से बेहद खुदगर्ज होता है और कोई परोपकारी व सदा दूसरे के बारे में सोचने वाला। निस्संदेह ऐसा वंशानुगत कारणों से होता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि बुरी आदतों वाले बच्चे को मां-बाप जब समझा-समझा कर थक जाते हैं और वह अपनी गलत आदतों से बाज नहीं आता तो वे उसकी उपेक्षा करने लगते हैं।
उपेक्षा के कारण ही बच्चा विद्रोह पर उतर आता है। कुछ वह मां-बाप के ध्यानकर्षण के लिए भी दूसरे भाई-बहनों से नफरत दिखाने लगता है जिसका नासमझ अभिभावकों पर तो उल्टा ही असर देखने में आता है। वे हर एक के सामने उपेक्षित बच्चे की बुराई करने लगते हैं। उसे ईर्ष्यालु कहकर उसके मन को चोट पहुंचाते हैं।
ऐसे में बच्चा फिर कभी सुधर नहीं सकता। वह अपराधी बन सकता है, घर से भाग सकता है या अत्यधिक संवेदनशील टैपरोमेंटल होने पर आवेग में आत्महत्या तक कर सकता है क्योंकि तब उसके लिए अनचाहा होने की त्रासदी असहनीय हो सकती है।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है मां-बाप को मन के भीतरी तहों में अपने सभी बच्चों से एक सा प्यार होता हे। उन्हें चाहिए कि वे अपना व्यवहार सभी बच्चों से एक सा ही रखें, कभी इनसे पक्षपातपूर्ण व्यवहार न करें। एक से सदा प्यार से और दूसरे को डांटते हुए न बोलें चाहे दूसरा कसूरवार व उद्दंड ही क्यों न हो।
उसे अकेले में बेशक डांट से प्यार से जैसा समय पर उचित लगे समझा सकते हैं लेकिन भूलकर भी दूसरे बच्चों के सामने न डांटें, न उस अकेले को लेक्चर दें। बाद में कौन सा बच्चा श्रवण कुमार या कौन सा खोटा सिक्का साबित होता है, कोई नहीं जानता। कहते हैं न, खोटा सिक्का कभी काम आ जाता है।
इसलिए किसी एक को बहुत अच्छा और दूसरे को बुरा समझना गलत होगा। आप बच्चों को प्यार दें, प्यार लें। अपने प्यार को लेकर कभी उनमें जाने अनजाने ईर्ष्या के बीज न बोयें। न इस बात से खुश हों कि वाह, आपके प्यार को लेकर बच्चे लड़ रहे हैं या आप कितना चाहे जा रहे हैं। चाहे जाने का यह सरासर गलत तरीका है। आप भी चाहे जाएं और बच्चे भी आपस में ईर्ष्या रहीत प्यार करें, इसी में से सच्ची सुख शांति परिवार में होगी।
– उषा जैन ‘शीरीं