Tuesday, June 25, 2024

क्यों जरूरी है शाकाहार

मांसाहार के सेवन से रक्त में कोलेस्टेरॉल की मात्रा बढ़ती है जो कि हृदय की धमनियों को अवरुद्ध कर देता है। यदि इस प्रकार के आहार का सेवन नहीं किया जाता है, तो कोलेस्टेरॉल की मात्रा खुद-ब-खुद घट जाती है। खेद की बात तो यह है कि उक्त निष्कर्षो के बावजूद वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते हैं कि एनिमल प्रोटीन या मांसाहार के सेवन से मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
पचास के दशक में जर्मन धावकों के दो समूहों  पर आहार सम्बन्धी प्रयोग किये गये। इन दोनों समूहों में से शाकाहारी खिलाडिय़ों में अधिक स्फूर्ति और क्षमता पायी गयी। अधिकांश फार्म एनिमल एवं पोल्ट्रियों के उत्पादन कृत्रिम प्रजनन से उत्पन्न किये जाते हैं, ताकि उनसे मांस ज्यादा प्राप्त हो। यदि हम फोल्ट्री फार्मिंग की तकनीक को देखें तो पता चलता है कि ब्रायलर चिक्स में कृत्रिम रूप से कार्सिनोजेनिक ग्रोथ हार्मोन्स एवं वैक्सीन दिये जाते हैं, जो कि मानव शरीर के लिये घातक हैं।
बकरे आदि के गोश्त को लाल और आकर्षक बनाने के लिये भी कई विक्रेता विभिन्न प्रकार के प्रिजर्वेटिव जैसे सोडियम नाइट्राइट एवं अन्य नाइट्राइट्स का प्रयोग करते हैं, जो मानव शरीर के लिये बहुत ही हानिकारक होता है। साधारण तौर पर भोजन के पचने में 4 से 7 घंटे का समय लगता है। भोजन के प्रकार, उसे पकाने की विधि और भोजन के साथ खायी जाने वाली अन्य वस्तुओं पर यह काफी हद तक निर्भर करता है। इन तीनों बातों का ध्यान रखने के बाद भी भोजन के कुछ अंश पचने से रह जाते हैं। मांसाहार खाद्यों को पचाने में तो बहुत अधिक वक्त लगता है और उसे सम्पूर्ण रूप से आमाशय से बाहर निकलने में 25 से 30 घंटे का समय लग जाता है। इसके बावजूद, कुछ हिस्सा पेट में रह जाता है और वहां रहकर सडऩ शुरू कर देता है।
” कैन्सर एंड अदर डिसीज फ्रॉम मीट कन्जम्पशन पुस्तक के लेखक लियोनार्डो ब्लानवचे मानते हैं कि सभी प्रकार के कैन्सर के मरीजों में एक तिहाई केवल पेट के कैन्सर से ग्रस्त पाये जाते हैं, जो पेट में पूरी तरह न पचने वाले खाद्य पदार्थ, जिनमें मांसाहार प्रमुख है से होता है। मांसाहार का अधिक उपयोग पेशाब में एरिथ्रोसाइड एवं अल्ब्यूमिन उत्पन्न कर कई तरह के संक्रमण को बढ़ावा देता है। इसी प्रकार कई लोगों को यह गलतफहमी रहती है कि शरीर में प्रोटीन की पूर्ति सिर्फ मांसाहार से ही हो सकती है, लिहाजा वे अत्यधिक मात्रा में मांसाहार करना शुरू कर देते हैं।
सच तो यह है कि प्रोटीन्स का अधिक उपयोग करने से भी कई प्रकार के कैन्सर हो सकते हैं। इससे ल्यूकेमिया एवं ब्राइट्स रोग होने की भी आशंका रहती है। डेनमार्क के पूर्व खाद्य प्रशासक डाक्टर हिण्डी कहते हैं, ”जब हम आवश्यकता से अधिक प्रोटीन ग्रहण करते हैं तो वह रक्त नाडिय़ों में पहुंचकर नाइट्रिक, सल्फ्यूरिक एवं फास्फोरिक एसिड्स में परिवर्तित हो जाता है। ऐसे एसिड्स को निष्क्रिय करने के लिये शरीर में स्थित क्षारीय खनिज उपयोग होने लगते हैं जिससे हड्डियों में खनिजों की कमी हो जाती है।
यदि आपको कुछ खास परिस्थितियों में शरीर के लिये आवश्यकता से अधिक प्रोटीन लेनेे की आवश्यकता पड़े तो यह आवश्यक है कि आप मांसाहार के बजाय प्रोटीनयुक्त वानस्पतिक वस्तुओं का सेवन करें। पशुओं में भी अन्तत: वनस्पति से पोषक तत्व आते हैं तब हम क्यों न सीधे अपने भोजन में फल, सब्जी वगैरह का उपयोग करें। फिलाडेल्फिया, अमेरिका के एक डॉक्टर को सन् 1977 में कुछ शारीरिक परेशानियों का आभास हुआ। जब स्वास्थ्य परीक्षण किया गया तो उनके पेन्क्रियाज, छाती की हड्डी, मस्तिष्क, फेफडे  आदि में कैन्सर के ट्यूमर पाये गये। उस समय उनकी आयु 47 वर्ष थी। उनके चिकित्सकों की राय थी कि वे तीन साल से अधिक न जी पायेंगे।
संयोग से उनकी एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई, जिन्होंने डॉक्टर महोदय को बताया कि  शरीर मेें इस प्रकार की व्याधियां मांसाहार, डेयरी उत्पादन, शराब रिफाइण्ड वस्तुओं जैसे-शक्कर, ठंडे पेय एवं असन्तुलित आहार, ग्रहण करने से उत्पन्न होती है। यदि वे ऐसी वस्तुओं का सेवन त्यागकर शाकाहारी, सन्तुलित आहार जिसमें चावल, सब्जियां, होल ग्रेन्स, बीन्स, मूली, गाजर, इत्यादि को सन्तुलित रूप से (न अधिक पकायी हुई न तली हुई) पकाकर ग्रहण करें तो शरीर में उत्पन्न व्याधियों को वे स्वयं की शक्ति से ही बाहर निकाल सकते हैं। आखिरकार इन डॉक्टर महोदय ने जीने की चाह मेें अपने भोजन में परिवर्तन किया और उन सज्जन के मार्गदर्शन में विशिष्ट रूप से पकाये गये शाकाहार का प्रयोग शुरू किया। डेढ़ वर्ष पश्चात जब उनके शरीर का चिकित्सकीय परीक्षण किया गया तब विशेषज्ञों ने उन्हें पूर्ण रूपेण रोग मुक्त घोषित किया।
इस डाक्टर ने उपरोक्त बातें स्वयं लिखित पुस्तक ”रिकॉल्ड बाय लाइफ में लिखी हैं। इन नतीजों के आधार पर शाकाहार की उपयोगिता खुलकर सामने आती है। मांसाहार आज के प्रदूषित वातावरण में तो और भी निरर्थक हो चुका है। शहरों में गंदे स्थलों पर विचरण करते विभिन्न पशु क्या हलाल होने या कटने के बाद मानव शरीर को पोषित कर सकते हैं? इसी तरह कारखानों के कचरे और बढ़ती आबादी के कारण बढ़ते जा रहे जलीय प्रदूषण की वजह से मछली का मांस भी अनुपयोगी हो गया है। आज आवश्यकता इन मुद्दों पर खुली बहस की है, ताकि लोग शाकाहार की उपयोगिता को समझें और आरोग्य रहें।
वासुदेव देवनानी-विनायक फीचर्स

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