सफल व्यक्ति वही बनता है, जिसमें आने वाले समय को भांपने की योग्यता होगी। कठिनाईयों में छिपे अवसरों को पहचानने की कला होगी, समस्याओं से लड़ने तथा शान्त मन से उनका समाधान खोजने की क्षमता एवं इच्छाशक्ति होगी। दूरदर्शिता होगी, अनुशासन में रहकर दृढ़ संकल्प के साथ ईमानदारी से कठोर परिश्रम करने की क्षमता होगी। मन में कुछ नया सीखते रहने की जिज्ञासा होगी। सफलता उसे ही वरण करेगी।
एक बात सदैव स्मरणीय है कि सफलता में भाग्य से अधिक कर्म का महत्व। भाग्य का अपना स्थान है, परन्तु बिना कर्म और पुरूषार्थ के भाग्य भी फल नहीं देगा।
हम वर्तमान में क्या है, यह तो निश्चित है, परन्तु बनना क्या है, बढ़ना कहां तक है, यह हमारे ईमानदारी से किये गये परिश्रम और लगन पर निर्भर करता है। जैसा बनने की आकांक्षा है वैसा बनने का जनून मन मस्तिष्क में रहना चाहिए। इस सच्चाई को प्रत्येक पल अपने मन में रखे कि सफलता में भाग्य का हिस्सा अवश्य है, परन्तु शेष तो हमारे पुरूषार्थ पर निर्भर है।
एक बात कभी न भूले कि जब हम किसी की मजदूरी को देने में पीछे नहीं रहते तो परमपिता परमात्मा तो न्यायकारी है वह हमारे द्वारा किये गये पुरूषार्थ और कर्म का फल अवश्य देगा।