समान नागरिक संहिता को लेकर बयान देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ इंण्डिया गठबंधन महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। महाभियोग के लिए राज्य सभा में नोटिस दिया गया है। श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा सईद रुहुल्लाह मेहदी ने कहा है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके और तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने नोटिस का समर्थन करने की बात कही है। प्रस्ताव का समर्थन करने वालों में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा भी हैं।
दरअसल, विश्व हिंदू परिषद की लीगल सेल ने 8 दिसंबर 2024 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक कार्यक्रम आयोजित किया था। इस कार्यक्रम में इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश शेखर यादव, जस्टिस दिनेश पाठक भी बुलाए गए थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस यादव ने कहा था कि यह हिंदुस्तान है और यह देश यहाँ रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा। यही कानून है।
जस्टिस शेखर यादव ने कहा कि आप यह नहीं कह सकते कि मैं हाईकोर्ट के जज होने के नाते ऐसा कह रहा हूँ। दरअसल, कानून ही बहुमत के हिसाब से काम करता है। इस दौरान जस्टिस शेखर यादव ने ‘समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता विषय पर बोलते हुए कहा कि देश एक है, संविधान एक है तो क़ानून एक क्यों नहीं है? उन्होंने ‘कठमुल्लों को देश के लिए घातक बताया।
जस्टिस यादव ने कहा कि हमारे हिंदू धर्म में बाल विवाह, सती प्रथा और बालिकाओं की हत्या जैसी कई सामाजिक कुरीतियाँ थीं। राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने इन कुरीतियों को खत्म करने के लिए संघर्ष किया लेकिन जब मुस्लिम समुदाय में हलाला, तीन तलाक और गोद लेने से जुड़े मुद्दों जैसी सामाजिक कुरीतियों की बात आती है, तब उनके पास इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं थी। उन्होंने कहा कि आप उस महिला का अपमान नहीं कर सकते जिसे हमारे शास्त्रों और वेदों में देवी का दर्जा दिया गया है। आप 4 बीवियाँ रखने, हलाला करने या तीन तलाक़ का अधिकार नहीं रख सकते। आप कहते हैं कि हमें ‘तीन तलाक कहने का अधिकार है और महिलाओं को भरण-पोषण ना देने का अधिकार है। अगर आप कहते हैं कि हमारा पर्सनल लॉ इसकी इजाजत देता है, तो ये अस्वीकार्य है।
उन्होंने कहा कि एक महिला को भरण-पोषण मिलेगा, दो विवाह की इजाजत नहीं होगी और एक आदमी की सिफऱ् एक पत्नी होगी, चार पत्नियाँ नहीं, अगर एक बहन को भरण-पोषण मिलता है और दूसरी को नहीं, तो इससे भेदभाव पैदा होता है जो संविधान के खिलाफ है। यूसीसी कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसकी वकालत वीएचपी, आरएसएस या हिंदू धर्म करता हो। देश का सुप्रीम कोर्ट भी ऐसी ही बात करता है। यह देश यूसीसी कानून ज़रूर और बहुत जल्द लाएगा।
भारत में न्यायाधीशों को हटाने के लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं जो कि काफी जटिल भी है। संविधान के अनुच्छेद 124 में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं हटाने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। यह अनुच्छेद भारत के सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और उसके कार्यों से संबंधित है। इसमें न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया है। यही वो अनुच्छेद है जो न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र बनाता है। इसमें कहा गया है कि न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। इस प्रस्ताव को लाने के लिए लोकसभा के कम-से-कम 100 सदस्यों या राज्यसभा के कम-से-कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला एक नोटिस दिया जाना चाहिए। नोटिस स्वीकार भी होना चाहिए।
नोटिस दोनों सदनों में स्वीकार होने के बाद तीन सदस्यीय एक जाँच समिति गठित की जाती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और चेयरमैन या स्पीकर की सहमति से चुने गए एक न्यायविद शामिल होते हैं। यह समिति न्यायाधीश पर लगे आरोपों की जाँच करती है और संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपती है। रिपोर्ट के आधार पर संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव पर बहस होती है। इस दौरान जज को भी संसद में अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। दोनों सदनों में ‘विशेष बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित होना आवश्यक होता है।
विशेष बहुमत का मतलब है कि प्रस्ताव को दोनों सदनों के कुल सदस्यों के बहुमत का समर्थन होना चाहिए। इसके साथ ही प्रस्ताव का समर्थन करने वाले सांसदों की संख्या सदन में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों की कम-से-कम दो-तिहाई होनी चाहिए।
बहुमत से प्रस्ताव पास होने के बाद इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति न्यायाधीश को उसके पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं। इस तरह जज की सेवा समाप्त हो जाती है। महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए जज पर दुर्व्यवहार, अक्षमता, पद की गरिमा की अवहेलना, पक्षपात, भ्रष्टाचार आदि जैसे गंभीर आरोप होने चाहिए।
-रामस्वरूप रावतसरे
बहुमत से प्रस्ताव पास होने के बाद इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति न्यायाधीश को उसके पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं। इस तरह जज की सेवा समाप्त हो जाती है। महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए जज पर दुर्व्यवहार, अक्षमता, पद की गरिमा की अवहेलना, पक्षपात, भ्रष्टाचार आदि जैसे गंभीर आरोप होने चाहिए।
-रामस्वरूप रावतसरे