क्या जमाना आया है। आज सब कुछ बदल रहा है, पहनावा बदल रहा है, व्यवहार बदल रहा है और विशेष रूप से जिस पर आदमी का स्वास्थ्य निर्भर है वह खाना-पीना बदल गया है, जिसके कारण अधिकांश लोग बीमार हैं।
पहले दाल-चावल, सब्जी-रोटी, दूध को महत्व दिया जाता था। लोग स्वस्थ रहते थे। अब इनके स्थान पर पिज्जा, बर्गर, नोडूल्यस, मैकरोनी आदि ने जगह बना ली है। दूध अनुकूल नहीं पड़ता, बस चाय-कॉफी है। दाल, चावल, सब्जी तो अब गरीब की रसोई तक सीमित रह गई है।
लस्सी, छाछ, आम पना, शिकंजी, नींबू पानी की जगह कोका कोला, पेप्सी जैसे कोल्ड ड्रिंक्स ने ले ली है। क्या कोई मां-बाप चाहता है कि बच्चे फटे-कटे कपड़े खरीद कर पहनें? परन्तु आज बड़प्पन इन झूठे आडम्बर में नजर आ रहा है।
हंसी झूठी, खाना नकली, पहनना फटा हुआ, नाखून-बाल बढे हुए, ये सब राक्षसी प्रवृत्ति की निशानी होती है, जो आज सभ्यता तथा बड़ा होने का झूठा अनुभव करवाती प्रतीत होती है, पुराने लोगों को यह सब देखकर घुटन महसूस होती है, परन्तु आज के युग में उनकी सुनता कौन है। नई पीढ़ी अपने को अधिक बुद्धिमान समझ रही है। पहले के लोग जो जीवन के लम्बे अनुभव संजोए हुए हैं, अप्रासांगिक हो गये हैं।