भातृत्व की भावना सभी मनुष्यों में किसी न किसी रूप में विद्यमान रहती है, किसी में कम और किसी में अधिक हो सकती है। मनुष्य के बिना मनुष्य की कल्पना सम्भव नहीं। जैसे सूरज की उष्णता, चन्द्रमा की शीतलता, जल की तरलता एवं दीपक का प्रकाश ही उनकी सच्ची विशेषता है। उसी प्रकार मानवता मनुष्य का गुण धर्म है।
भातृ भाव मानवता के गुण का अभिवर्धन करता है। समाज एक वृक्ष और मनुष्य उस वृक्ष की टहनियां और पत्ते हैं। जैसे वृक्ष को उसकी स्वस्थ पत्तेदार टहनियों से भोजन मिलता है और वह हरा-भरा रहता है, वैसे ही हरे भरे वृक्ष की शाखाएं और पत्ते भी हरे भरे रहेंगे। इसी प्रकार स्वस्थ चित्त और स्वस्थ मन के मनुष्यों के द्वारा स्वस्थ समाज की रचना होती है।
जैसे वृक्ष और टहनियां एक-दूसरे की पूरक है वैसे ही समाज के लिए मनुष्य और मनुष्य के लिए समाज पूरक है। हमारा अस्तित्व तभी तक है, जब तक वृक्ष (समाज) विद्यमान है, हमें एक संकल्प की आवश्यकता है कि मैं औरों के प्रति सदैव अच्छे विचार एवं शुभ भावनाएं रखूंगा तथा अपने सामर्थ्य के अनुसार सभी का सहयोग करता रहूंगा। यदि हम इस भाव को जीवन में उतार ले तो सर्वत्र प्रेम एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्मित हो जायेगा।