सांसारिक कार्यों में एक-दूसरे का सहयोग बहुत उपयोगी है और कभी-कभी बहुत जरूरी भी हो जाता है। किसी से सहयोग मांगना भी एक कला है और यह कला सभी को आनी भी चाहिए। यदि आप विनीत भाव से किसी कार्य में व्यक्ति विशेष को सहयोग के लिए कहेंगे, तो वह व्यक्ति अपनी क्षमताओं से बाहर जाकर भी खुशी-खुशी आपकी सहायता करेगा।
विनीत भाव से किये गये निवेदन में आदर भाव है, अनुरोध है, निवेदन द्वारा व्यक्ति शत्रु का भी दिल जीत लेता है। सहयोग के लिए प्रार्थना रूप में किये गये निवेदन से अनजान व्यक्ति भी हृदय से प्रसन्न होकर सहायता प्रदान करने में संकोच नहीं करता। निवेदन करना शिष्टाचार का प्रमुख गुण है।
वही हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीन समय से चलती आ रही सकारात्मक सोच चिंतन की परम्परा रही है, जो मनुष्य के अन्दर महानता के गुण बढाने में प्रमुख आधार का कार्य करती है। किसी से जब कोई निवेदन करता है, तो उसका मन प्रसन्नता से झूम उठता है और वह दिल खोलकर उसकी बात सुनता है। वह अपने जरूरी कामों को छोड़कर भी सहायता करने को खड़ा हो जाता है।
भगवान से सभी निवेदन करते हुए हाथ जोड़कर कहते हैं ‘विनती सुन लो हे भगवान हम सब बालक है नादान’। सामने वाले को श्रेष्ठ मानकर कर्ता उन्हें निवेदन करके आदर-सम्मान प्रदान करता है। स्वाभाविक रूप से यह मनुष्य का महान लक्षण है, जो उसे श्रेष्ठता प्रदान करता है।