आज के युग में चारों ओर भय ही भय। जो मिला है उसे बचा लेने का भय, जो जाने वाला है उसे टिका लेने की लालसा। इसी वृत्ति ने हमें भीतर से खोखला किया हुआ है। हमारे अपने ही श्रेष्ठ के प्रति हमारी आस्थाएं डगमगा गई हैं। क्या कारण है इसका?
अपने चिंतन को हमने सही दिशा नहीं दी। विश्व के सर्वश्रेष्ठ ज्ञान के स्वामी होते हुए भी उस पर गर्व न करने के कारण, उसके अनुसार अपने जीवन में व्यवहार न करने के कारण, उसकी उपेक्षा कर देने के कारण हम हीन भावना से ग्रसित हो गये हैं।
विचार कीजिए क्या सारी मानवता भौतिकवाद से संतुष्ट है? उत्तर है नहीं। हमें सुविधाएं तो मिल गई पर सुख नहीं। सुख पाने के लिए क्या करना होगा? इसका उत्तर आपके पास है। आपको जो ज्ञान मिला है, उसी में उत्तर निहित है।
दुनिया हमारी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से निहार रही है, परन्तु जब हमने स्वयं अपने उस सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की उपेक्षा कर दी है तो हम दुनिया को क्या उत्तर देंगे? जब दो अरब वर्ष पूर्व के ज्ञान और संस्कृति को जिसे सृष्टि के आरम्भ में वेदो के रूप में परमपिता परमात्मा ने हमारे ऋषियों को दिया, उसे हम स्वयं ही सार्वजनिक रूप से हजारों वर्ष का बता रहे हैं। हम नाम वेदो का बहुत लेते हैं पर क्या है वेदो में इसका ज्ञान हमें नहीं। वेदो के अनुसार तो हमने जीवन को शतांश भी नहीं ढाला है और त्रुटिपूर्ण अज्ञानी परम्पराओं को अपना लिया है। यही कारण है भय का, जो पूरी मानवता को डरा रहा है।