अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने, मन की शान्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए हम क्या-क्या नहीं करते। जाप, तप, पूजा, पाठ, व्रत, उपवास, ज्ञान, ध्यान, तीर्थ और दान करने तक पुण्य अर्जित करने के जितने भी उपाय हैं वे सभी इसीलिए किये और कराये जाते हैं कि ऐसा करने से परमात्मा प्रसन्न होंगे और उसकी कृपा के हम पात्र बन पायेंगे, सब पाप मिट जायेंगे, जीवन पवित्र हो जायेगा।
इसके साथ एक जो सच्चाई है उसका भी स्मरण रखना होगा, वह यह कि आपका मन यदि पवित्र नहीं है तो ये सब व्यर्थ है। सर्वप्रथम मन को पवित्र करना होगा। मन पवित्र होगा, निर्मल होगा तो सब मार्ग खुलते जायेंगे, क्योंकि जिनका मन निर्मल होता है, वही तो परमात्मा को पा सकते हैं।
परमात्मा को छल कपट आदि दुर्गुण नहीं भाते। अपने कल्याण की कामना करने वालों को इन दुर्गुणों से दूर रहना चाहिए। कपट पूर्ण व्यवहार कुटिल व्यक्ति ही कर सकता है। श्रेष्ठ और निर्मल व्यक्ति तो सदा सीधे सच्चे मार्ग पर ही चलना पसन्द करते हैं। परमात्मा का प्यार भी उन्हीं को प्राप्त होता है।