मनुष्य को जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता तथा तीसरा आचार्य मिल जाये तभी वह ज्ञानवान होता है। वह कुल धन्य, वह संतान बड़ी भाग्यवान जिसके माता और पिता धार्मिक विद्वान हो, जितना प्रभाव संतान पर माता के उपदेशों का होता है, उतना अन्य किसी से नहीं हो सकता। जैसे माता संतानों को प्रेम और उनका हित करना चाहती है उतना अन्य कोई नहीं करता।
इसलिए ”प्रशस्ता धार्मिकी माता विद्यते यस्य स मातृमान” अर्थात धन्य है वह धार्मिक माता कि जो गर्भाधान से लेकर जब तक विद्या पूरी न हो तब तक संतान को सुशीलता का उपदेश करती रहे। माता-पिता को अति उचित कि गर्भाधान के पूर्व, मध्य और पश्चात मादक द्रव्य, मद्य, रूक्ष दुर्गंध, बुद्विनाशक पदार्थों का त्याग कर दे।
उनके स्थान पर बल, बुद्धि, पराक्रमवर्धक पदार्थ जैसे गौघृत, गौ दुग्ध, मिष्ठ, अन्नपान आदि का सेवन करे, जिससे माता सदैव उत्तम शिक्षा दे, जिससे संतान दोषों से रहित होकर अत्युत्तम गुणवान हो। संतान को माता सदा उत्तम शिक्षा दे, जिससे वह सभ्य और सुसंस्कृत हो, किसी प्रकार की किसी काल में कुचेष्टा न करें।