कितना बड़ा आश्चर्य है कि आदमी यह जानते हुए भी कि संसार में जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है, वह अमर होना चाहता है, वह मरना नहीं चाहता। इस नाश्वान, क्षण भंगुर शरीर को सदैव स्थायी रखने की तथा इस शरीर के सहारे ही सदैव इस पृथ्वी पर रहने की असम्भव कामना करता है, जबकि यह ध्रुव सत्य है कि सशरीर सदैव कोई भी जीवित नहीं रह सकता। इस सच्चाई को जानते हुए भी हम असम्भव की कामना करते हैं। जैसा कारण होता है वैसा ही उसका कार्य भी होता है। जिन तत्वों से यह शरीर बना है इस शरीर की रचना हुई है वे तत्व सदैव अपने उस रूप में विद्यमान नहीं रह पाते, इसलिए यह शरीर भी सदैव किसी का साथ नहीं दे पाता, जबकि हम इस शरीर की सत्ता को सदैव संरक्षित रखने की कामना करते रहते हैं, जो शाश्वत है, स्थायी है, निरन्तर रहने वाली अर्थात सदैव से थी और सदैव रहेगी, ऐसी सत्ता तो मात्र परमपिता परमात्मा की है। इसी सत्ता के अन्तर्गत जीव जगत सभी शासित होते हैं। शक्ति भी शक्तिमान की ही होती है। शक्ति की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है। वह शक्तिमान के बिना शून्य है। हम सभी उस सर्वशक्तिमान से प्रकाश पाकर ही प्रकाशित हो रहे हैं, परन्तु हमने झूठा अहंकार पाला हुआ है, जो कुछ भी हमारे आसपास अच्छा हो रहा है, उसका निमित्त हम स्वयं को मानने का भ्रम पाले हुए हैं।