हमारे अन्य पर्वों की भांति होली भी विज्ञान पर आश्रित पर्व है। इसकी सभी क्रियाएं रहस्यपूर्ण है और मानव स्वास्थ्य और शक्ति पर प्रभाव डालती है। देश भर में एक साथ सम्पन्न होने वाला होलिका दहन जाड़े और गर्मी की ऋतु संधि में फूट पडऩे वाले रोग जैसे फ्लू, खसरा, चेचक तथा अन्य संक्रामक रोग कीटाणुओं के विरूद्ध एक सामूहिक अभियान है।
जगह-जगह होलिका हदन में सुगन्धित तथा रोग नाशक पदार्थों द्वारा सामूहिक यज्ञ किये जाने का प्राविधान है, जिसमें अनेक रोगों के कीटों को समाप्त करने की अद्भुत क्षमता है। साथ ही नई फसल जो पक कर तैयार होने वाली है, वह समय से पक जाती है। वायुमंडल के सुगन्धित हो जाने से उनसे निरोगी अन्न की प्राप्ति होती है।
शुद्ध वायु मंडल समस्त जीवों, वृक्षों तथा वनस्पति समाज के लिए लाभकारी है। यद्यपि आज के समय इसका स्वरूप बदल गया है। मात्र लकड़ी तथा गोबर के उपलों के ढेर में अग्रि लगाकर होली पूजन कर लिया जाता है। वह पुरातन सामूहिक यज्ञ की परम्परा समाप्त प्राय: हो गई है। इससे इष्ट साध्य तो नहीं होता फिर भी अधिक ताप द्वारा समस्त वायुमंडल के उष्ण होने से कुछ न कुछ कीटों का नाश तो हो ही जाता है।