जैसी भावनाएं और विचार आपके मन में है आपके लिए वातावरण भी वैसा ही बनता चला जायेगा। यही वातावरण आपके जीवन को आपके परिवार को आपके समाज और देश को विशेष सांचों में ढाल देता है। सब कुछ क्या है कुछ संकल्प कुछ विकल्प, संकल्पों में पवित्रता होना अनिवार्य है।
संकल्प दूषित होंगे तो मन निश्चय ही दूषित होगा। मन दूषित होगा तो तन भी दूषित हो जायेगा। नये-नये रोग शरीर को घेर लेंगे। जैसे-जैसे रोगों में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे विज्ञान नये रोगों की चिकित्सा खोजता है, परन्तु रोग है कि कम होने का नाम ही नहीं लेते एक रोग की औषधि का आविष्कार होता है तो एक नया रोग पैदा हो जाता है। एक जमाने में राजयक्ष्मा (टी.बी.) को असाध्य रोग माना जाता था।
उसकी चिकित्सा पर अनुसंधान किया गया, रोग पर नियंत्रण हुआ फिर कैंसर ने अपना डेरा जमा लिया, उसकी औषधि पर अनुसंधान हुआ, कुछ सीमा तक उस पर नियंत्रण हुआ तो एड्स की नई बीमारी ने दस्तक दे दी, जिसकी अभी तक कोई चिकित्सा सफल नहीं हुई। यदि हमारे संकल्प और भावनाएं पवित्र हो जायें, ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य शत्रुता के भाव समाप्त हो जाये तो मन पवित्र हो जाये तो सम्भवत: स्थिति बदल जाये।
मन पवित्र रहेगा, तो मन भी स्वस्थ रहेगा। रोगों से छुटकारा हो जायेगा। वैज्ञानिकों को भी नये-नये रोगों की चिकित्सा के लिए औषधि के अनुसंधान हेतु समय नष्ट नहीं करना होगा। वे किसी दूसरी जनोपयोगी योजना पर अपनी ऊर्जा लगायेंगे।