भगवान की प्रसन्नता हमें प्राप्त हो यह कामना हम सदा ही करते हैं ताकि हमें जीवन में किसी प्रकार के कष्टों, दुखों का सामना न करना पड़े। उसके लिए कभी-कभी हम कोई अनुष्ठान, भजन, कीर्तन आदि भी कराते हैं। उस भजन, कीर्तन की आवाज को दूसरों को सुनाने के लिए स्वर विस्तारक यंत्र भी लगा देते हैं, परन्तु हम यह विचार नहीं करते कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए किसी ढोलक, बाजे, तबले आदि की आवश्यकता नहीं, घंटे-घडियाल या शंख बजाने की भी आवश्यकता नहीं। गला फाड़-फाड़कर ऊंचा बोलने या ध्वनि विस्तारक यंत्र के द्वारा उसका नाम ले शोर मचाने की भी आवश्यकता नहीं। भगवान तो भक्त के हृदय की सद्भावना, निष्कपट प्रेम, स्व कर्त्तव्य पारायणता से ही प्रसन्न होते हैं।
हृदय से उसे स्मरण करते हुए अपना कर्तव्य पूरा करते रहे। भक्ति के लिए परोपकार करिये, दूसरों की सहायता करने की भावना रखिए। सच्चा प्रभु भक्त दूसरों से छीनता नहीं किसी के साथ विश्वासघात नहीं करता, किसी को सताने की इच्छा नहीं रखता, बल्कि दूसरों को देने की कामना रखता है।
हर बार परोपकार करने जैसे शुभ कर्म के लिए आपके हाथ उठे तो परमात्मा का धन्यवाद करना न भूले कि उसने मुझे किसी योग्य बनाया, किसी की सेवा का अवसर प्रदान किया। परोपकार में जीवन लगायें, परोपकार को समर्पित रहे। सच यह है कि प्रभु के दरबार में सबसे पहले वे ही स्वीकार्य होंगे, जो परोपकारी हैं।