एक लोकोक्ति है ‘करे सेवा मिले मेवा’। मन में सेवा का भाव रखने वाला व्यक्ति ‘धर्म वृक्ष’ को सुरक्षा प्रदान करता है। सबकी प्रियता प्राप्त करता है। इसलिए आज से और अभी से सेवा का संकल्प ले।
स्मरण रहे कि जीवन का धागा असंस्कारित है। इसलिए क्षण मात्र के लिए भी प्रमाद मत करो। बूढ़े होने तक आप जीवित रहेंगे यह कतई सुनिश्चित नहीं है। किसी भी समय विदा की वेला उपस्थित हो सकती है। किसी भी क्षण जीवन समाप्त हो सकता है, खो सकता है। इससे पूर्व कि जीवन खो जाये, जीवन में छिपे परम जीवन को पा लो।
इससे पूर्व कि श्वास वापिस न लौटे आत्मा में छिपे परमात्मा को जगा लो। जीवन क्षणिक है, अनिश्चित है फिर भी जीवन अमूल्य है। एक-एक श्वास अमूल्य है। समग्र पृथ्वी तल का धन तौलकर भी एक श्वास खरीदा नहीं जा सकता। यह अमूल्य इसलिए भी नहीं कि उसे खरीदा जाना असम्भव है।
यह जीवन अमूल्य इसलिए है कि उसी से परम जीवन साधा जा सकता है। केवल इसी जीवन से परमात्मा को उपलब्ध हुआ जा सकता है। अप्रमाद की दीपशिखा को प्रतिपल प्रज्जवलित रखो और जीवन में छिपे परम जीवन को सेवा, परोपकार, अहिंसा, सत्य और अस्तेय के द्वारा सहज सरल बना लो।