अनेक नदियां समुद्र में पहुंचती हैं, परन्तु इन सबको अपने भीतर समा लेने के पश्चात भी समुन्द्र अपनी मर्यादाओं से बाहर नहीं आता, अपने में स्थिर रहता है। प्रकृत्ति समुद्र के माध्यम से संदेश दे रही है। दुनिया के पदार्थ मिले या छूट जाये, कितना भी धन प्राप्त हो जाये, कितना भी ऐश्वर्य मिल जाये, परन्तु अपनी गम्भीरता को कम न होने दो, अहंकार से दूर रहो। समुद्र की तरह अपनी मर्यादा को बनाये रखो।
संसार तो संयोग, वियोग का केन्द्र है। कुछ मिलता है तो कुछ छूटता है। जीवन में गम्भीर रहते हुए कुछ न कुछ सीखते रहो। जैसे समुद्र अपने भीतर से ही गतिमान रहता है, तुम भी जीवन में लगातार कर्म करते जाओ। कर्मरत रहने से जीवनी शक्ति आनन्द देने वाली बन जायेगी। कर्म योग को भगवान की प्राप्ति भी शीघ्र हो जाती है।
पिछले कर्मों के कारण दुर्भाग्य पर रोना नहीं चाहिए सन्मार्ग पर ही चलते रहना चाहिए। दुख की अंधियारी रात अवश्य बीतेगी तथा उज्जवल प्रभात आयेगा। सुख दुख तो हमारे कर्मों का ही फल है। प्रत्येक कर्म का फल मिलना है। आज यदि बुरे कर्मों का मिल रहा है तो कल अच्छे कर्मों का फल भी अवश्य मिलेगा।