ओइम् भुभुर्व: स्व:…..यो न प्रचोदयात। यर्जुवेद के इस महामंत्र में जिसे गायत्री मंत्र कहा जाता है स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना तीनों है। इस मंत्र का पद्य में हिन्दी भावार्थ इस प्रकार किया गया है ‘तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा तू, तुझसे ही पाते प्राण हम दुखियों के कष्ट हरता है तू। तेरा महान तेज है छाया हुआ सभी स्थान, सृष्टि की वस्तु में तू हो रहा है विद्यमान तेरा ही धरते ध्यान हम मांगते तेरी दया, ईश्वर हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चला।
मंत्र के रचनाकार ऋषि ने यह मंत्र कब कहा जब उसने ईश्वर की महिमा को साक्षात देखा, अनुभूत किया हम भक्त लोग क्या करते हैं केवल वाणी से कह रहे हैं, परन्तु अनुभूति नहीं करते। हम ईश्वर के भर्गों स्वरूप का साक्षात्कार करने का प्रयास तो करे। उस महान तेज को प्रत्यक्ष में देखे तो। जब वह ईश्वर सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है तो क्या वह हमारे भीतर नहीं है, क्या हम विश्वास करते भी हैं कि ईश्वर हमारे भीतर विराजमान है।
सच यह है कि हम यह विश्वास करते ही नहीं अन्यथा उसे खोजने को बाहर भटकने की अपेक्षा उसके दर्शन अपने भीतर ही करने का प्रयास न करते। वस्तु कहां है हम ढूंढ कहीं ओर रहे हैं तो फिर भी हाथ कैसे आये, प्राप्त कैसे हो वह हमारे भीतर है, किन्तु उसे खोजने के लिए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों तथा चर्चों की परिक्रमा कर रहे हैं फिर भी वह हमसे दूर ही रहता है।