आप कितने भी दान-पुण्य करे, यज्ञ कराये, अखंड पाठ, कीर्तन और जागरण कराये अपने नाम के प्रचार के पत्थर लगवाये और अहंकार की तुष्टि के लिए कुछ भी करे यदि उनमें लगा धन आपकी शुद्ध कमाई का नहीं है तो आपको कुछ भी पुण्य मिलने वाला नहीं है।
अहंकारी बन दुनिया को मूर्ख न समझे। सबको पता रहता है कि यह आपने किस प्रकार कमाया है। यदि आप पाप की कमाई से दान कर स्वयं के अहम् को तुष्ट कर रहे हैं तो आप स्वयं भी पल-पल ठगे-लुटे और मूर्ख बनते जा रहे हैं।
आपके पास जितनी भी पूंजी है, सम्पदा है, भौतिकता के साधन है, उनमें श्रम, ईमानदारी और निष्ठा का लेश मात्र भी अंश नहीं तो फिर आप दान किसका कर रहे हैं। यदि सच्चाई से देखा जाये तो वह दान का धन आपका है ही नहीं तो आप श्रेय किस बात का लेना चाहते हैं।