महान चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस जब मृत्यु शैया पर थे, उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाकर अपने जीवन का अंतिम संदेश देने के उद्देश्य से धीरे से कहा ‘मेरे प्यारे शिष्यों जरा मेरे मुंह में झांककर देखो कि जीभ या या नहीं? एक शिष्य ने मुंह में झांककर देखा और उत्तर दिया ‘गुरूदेव जीभ तो है’। इसके बाद अन्य शिष्य को संकेत प्रश्र पूछा ‘तुम देखकर बताओ कि मेरे मुंह में दांत हैं या नहीं’? ‘गुरूदेव आपके मुंह में दांत तो एक भी नहीं’ दूसरे शिष्य ने उत्तर दिया। तब महात्मा कन्फ्यूशियस ने आगे पूछा पहले दांत का जन्म हुआ था या जीवन का? ‘गुरूदेव जीभ का’ इस बार सब शिष्यों ने एक साथ उत्तर दिया। ‘ठीक’ कहकर कन्फ्यूशियस ने शिष्यों से पूछा ‘शिष्यों जीभ जो दांत से उम्र में बड़ी है, अब भी मौजूद है, किन्तु दांत जो जीभ से उम्र में छोटे हैं नष्ट क्यों हो गये? इस प्रश्र को सुनकर सब शिष्य एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। किसी से भी उत्तर देते न बना। तब गुरूदेव ने उन्हें समझाया ‘सुनो जीभ सरल और कोमल है इसी कारण अभी तक मौजूद है। दांत कू्रर और कठोर हैं इसी कारण शीघ्र नष्ट हो गये। नम्रता, सरलता सदैव ग्राह्य है और कठोरता त्याज्य। यही मेरा अन्तिम संदेश है।