जीवन में सफलता मिले प्रगति हो, सम्मान प्राप्त हो, उसके लिए गतिशीलता का एक विशेष महत्व है। कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है, उसमें अनेक विकृतियां जमा होती रहती हैं, जिस प्रकार घिरे हुए पानी में कूड़ा-करकट और काई इकट्ठी हो जाती है, संडाध आ जाती है, उसी प्रकार निष्क्रिय व्यक्ति का जीवन भांति-भांति की बुराईयों से भर जाता है। गतिशील नदी की जलधारा के प्रवाह में बह जाने वाली गन्दगी की तरह कर्मशील व्यक्ति का चैतन्ययुक्त मन मैल को निकालकर फैंक देता है और निर्मल हो जाता है। जापान में पौधों के विकास को रोककर उन्हें छोटा कर देते हैं, इससे छोटे-मोटे तनों के पेड़ एक गमले में समा जाते हैं, वे बौने हो जाते हैं। यही बात मनुष्य के साथ है। मनुष्य एक विकासशील प्राणी है। उसका विकास रूक जाता है, तो वह बोना रह जाता है। जीवन की सार्थकता उसकी सक्रियता में है। उन्हीं उदात्त क्षणों में महान कार्य हुए हैं, जिन क्षणों में व्यक्ति अधिक सक्रिय रहा है, अर्थात जिस अवधि में अधिक पुरूषार्थ किया है। स्वस्थ और सक्रिय मन में ही सृजन के बीज जन्म लेते हैं और पनपते हैं। सौद्देश्य सक्रियता से ही जीवन की सार्थकता है।