भारत की एक परम्परा रही है कि हम सदियों से संयुक्त परिवारों में एक साथ रहते आए हैं। परिवार एक सरोवर के समान है, जिसमें अनेकों रत्न होते हैं, कुछ रत्न अनमोल हैं तो कुछ ना मोल, परन्तु परिवार रूपी सरोवर सबको समेटे रहता है।
मन में अभिलाषा बहुत होती है, सब एक दूसरे से उम्मीदें रखते हैं, परन्तु समय के साथ परिवारों में बहुत बदलाव आ गया है। बच्चे बहुत ‘समझदार’ हो गये हैं।
एक समय था जब परिवार के बड़े-बुजुर्गों से प्रत्येक कार्य में परामर्श लिया जाता था। बड़ों की पूछ होती थी। आज यदि हम यह आशा करें कि बच्चे सभी महत्वपूर्ण कार्यों को हमसे पूछकर करें तो सम्भव ही नहीं। समय के साथ उचित यह रहेगा कि उनके निर्णय उन्हीं पर छोड़ देने ठीक हैं।
बड़े बुजुर्ग अपनी आयु के साथियों के साथ मेल-जोल बढ़ाएं। अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ें। सामाजिक कार्यक्रमों में भागीदारी करें। घर के जो भी कार्य आपके करने के योग्य हैं उनमें हाथ बंटायें। सकारात्मक सोच के साथ सकारात्मक जीवन जीयें। घर में रहकर स्वयं को बेचारा न बनायें। अपने आपको कभी कमजोर न समझें।