आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है। इस विशिष्ट दिवस पर दुखी मानवता भगवान कृष्ण से प्रार्थना कर रही है कि हम भगवान तो नहीं हो सकते न प्रभु पर आप तो मनुष्य रूप में आ सकते हैं। आप तो मनुष्य की पीड़ा में जी सकते हैं ना? इसलिए उतरो आकर हमारे स्तर पर खड़े हो जाओ। हमारा पुत्र बन जाओ, हमारा मित्र बन जाओ, हमारा प्रियतम, हमारा सखा, स्वजन, सहोदर बन जाओ। हमारा सर्वस्व बन जाओ, सर्वेश्वर बन जाओ। भक्तों की इस पुकार को श्रवण करके भगवान अवतरित होते हैं। यह है प्रीत भाव से विवश होकर अपने भक्तों के इशारों पर नाचने की प्रक्रिया। प्रेम के वशीभूत होकर छछिया भर छाछ पर नृत्य करना। यह कैसे सम्भव है? जब तक ब्रज के एक-एक बच्चे का जीवन दूध-दही से सिंचित नहीं हो जाता, तब तक दूध-दही नहीं बिकेगा, पहले वह उस हर बच्चे को उपलब्ध होना चाहिए, जिनके माता-पिता उसे खरीद नहीं सकते। यह क्रांति करने वाले हैं मेरे श्याम सुन्दर। हां यदि कोई मटकी भरके दूध-दही की मथुरा की ओर बिकने चलेगी उस मटकी पर ढेला जरूर फेंका जायेगा। मटकी टूटेगी, दूध-दही, मक्खन उसमें जो भी हो बहेगा, यह स्वीकार है, परन्तु जब तक सबकी भूख नहीं मिट जाती, तब तक दूध-दही, मक्खन बिकना स्वीकार नहीं। ऐसा सुन्दर भाव था श्री कृष्ण का। यही है भारत की धरती का भाव। श्याम के सुन्दर भाव जीवन का दर्शन कीजिए। उसी में सामाजिक समरसता का दर्शन होगा।