Thursday, September 19, 2024

अनमोल वचन

संसार में ऐसा कोई घर नहीं जहां किसी प्राणी की मृत्यु न हुई हो, किन्तु परिवार के किसी सदस्य अथवा सम्बन्धी की मृत्यु पर हम शोक विह्ल हो जाते हैं। जिस लोक में हम रहे रहे है उसे मृत्यु लोक कहा जाता है, जो जन्म लेगा उसकी मृत्यु भी निश्चित है। यह प्राकृतिक सत्य है कि संयोग तो वियोग के लिए ही होता है, जो मिले हैं उनका बिछुडना भी कभी न कभी अवश्य होगा, प्रियजनों का वियोग प्रारम्भिक अवस्था में असह्य प्रतीत होता है, किन्तु ज्यौ-ज्यौ समय बीतता जाता है विरह वेदना स्वाभाविक रूप से कम होने लगती है। हृदय दुख सहने का अभ्यासी बन जाता है, क्योंकि समय ही दुख का मरहम है। जहां चित्त दूसरी ओर लगा इष्ट वियोग जनित शोक विस्मृत सा होने लगता है, जो परिजन प्रियजन वियोग से अधीर होकर प्राण तक देने को उतावले दीख पड़ते थे, वे ही कालान्तर में किलोले करते देखे जाते हैं। यर्थाथ यह है कि मनुष्य स्वार्थ के लिए रोता है, मरे हुए के लिए नहीं। विछोह को ईश्वरेच्छा समझकर उसे शान्ति से सहन कर लेने में ही शोक ग्रस्त का कल्याण है। ‘जेहि विधि प्रभु प्रसन्न मन होई, करूणा सागर कीजिए सोई।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,334FansLike
5,410FollowersFollow
107,418SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय