यदि आप स्वयं को एक मशीन के रूप में देखे तो आपके पास शरीर है, मस्तिष्क है, बुद्धि है, आपके पास सब कुछ है, जिसे आप प्रभु कृपा कहते हैं वह एक चिकनाई की भांति होती है। आपका इंजन कितना भी मजबूत क्यों न हो बिना इस चिकनाई के आप हर जगह अटक जायेंगे। इस पृथ्वी पर अनेक लोग हैं, जो बुद्धिमान है, क्षमतवान है, परन्तु के हर मोड़ पर अटक जाते हैं, क्योंकि उनके पास प्रभु कृपा की चिकनाई नहीं होती। कुछ लोगों के जीवन में भरपूर कृपा है और उनका जीवन आनन्दमय है, जबकि कुछ लोग प्रत्येक छोटी-छोटी चीज को लेकर जीवन के साथ जूझ रहे हैं। जीवन के सफर को आनन्दमय बनाने के लिए प्रभु कृपा प्राप्त करनी होगी। इसे पाने की सबसे सरल विधि है भक्ति परन्तु बुद्धि बहुत चालाक है वह किसी की भक्त नहीं बन सकती। आप भक्ति करना चाहेंगे, परन्तु बुद्धि तर्क करेगी, हिसाब लगायेगी, स्वार्थी बुद्धि कभी भी भक्ति नहीं कर सकती। लोग भक्ति नहीं करते व्यापार करते हैं। किसी स्वार्थ विशेष को लेकर अनुष्ठान करते हैं, आप करते हैं या कराते हैं। इस प्रकार न भक्ति हुई न आपका कार्य सिद्ध हुआ। सरल और सच्चा उपाय यह है कि भक्ति आपके संस्कार में होनी चाहिए किसी कार्य विशेष की सिद्धि के लिए भक्ति का दिखावा करके प्रभु कृपा की आशा मत कीजिए।