जीवन के प्रत्येक मोड़ पर हम सकारात्मक अथवा नकारात्मक रूप से किसी न किसी से प्रेरित रहते हैं और हमारे कार्य, उद्देश्य और संकल्प आदि सभी प्रकार के व्यवहारिक गुण भी इसी से निर्धारित होते हैं। मनुष्य सफलता पाने के लिए अपने भीतर आत्मविश्वास और उत्साह को जगाता है, जो आंतरिक प्रेरणा को उद्वेलित करते हैं। व्यवहारिक रूप से आत्म विश्वास मनुष्य की कार्य क्षमता पर निर्भर करता है और प्रत्येक मानवीय व्यवहार लाभ-हानि के गुणा भाग से निर्धारित संचालित होते हैं। यदि व्यक्ति को हानि के बदले लाभ अधिक नजर आता है तो वह उसके लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। प्रेरणा दो प्रकार से व्यक्ति को प्रभावित करती है। एक बाहरी प्रेरणा और दूसरी आन्तरिक प्रेरणा। बाहरी प्रेरणा क्षणिक होती है। जब तक प्रेरक विद्यमान है तब तक ही बाहरी प्रेरणा व्यक्ति को प्रेरित करती है, जबकि आन्तरिक प्रेरणा हमें स्थायी रूप से प्रेरित कर सकती है, किन्तु आन्तरिक प्रेरणा का स्रोत उसी का हरा-भरा रहता है, जो अपने कर्तव्यों के प्रति सजग हो। अपने उत्तरदायित्वों के प्रति जिनका कर्तव्यबोध बना रहता है। आत्मविश्वासी वे ही होते हैं। स्मरण रहे कि व्यक्ति का आत्मविश्वास ही सदा प्रेरक की भूमिका में रहता है। इसलिए अपने आत्मविश्वास को कभी डिगने न दें।