आग की धूनी लगाकर शरीर तपाना तप नहीं। ठेठ सर्दी के दिनों में शीतल जल में खड़े रहकर जप-जाप करना तप नहीं, शरीर को भूखा मारना भी तप नहीं, निरुद्यमी का मात्र राम नाम जपना भी तप नहीं बल्कि पुरूषार्थ करते हुए मनुष्य को अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिए, जिससे वह सर्दी-गर्मी और कठोरताओं के सहन करने का अभ्यासी हो जाये।
इन कठोरताओं के सहन करने का नाम ही तप है, कितनी भी कठिनाईयां आये, प्रभु स्मरण करते हुए सत्पुरूषार्थ और ईमानदारी से अपनी जीविका कमाने वाला ही तपस्वी है। तैतिरीय उपनिषद में नियमानुकूल जीवन बनाना, सत्याचारी बनना, स्वाध्यायशील बनना, चंचलता रहित होना।
इन्द्रिय निग्रह, मनोनिग्रह, दूसरों की सहायता करना, शुभ कर्म करना और सच्चिदानन्द स्वरूप ईश्वर का ध्यान करते हुए जीविका उपार्जन करने का नाम ही तप है। मनुष्य को इन तपों को धारण करके अपना जीवन तपस्वी बनाना चाहिए।