सद्शास्त्रों, संतों, महात्माओं और मनीषियों के संदेश केवल पढऩे-सुनने की बात नहीं होती, जिस प्रकार जल की चर्चा करने से प्यास नहीं बुझती, उसी प्रकार से शास्त्रों, संतों और मनीषियों के वचनामृत को केवल पढऩे-सुनने से बात नहीं बनती।
जिस प्रकार जल पीने से ही प्यास बुझेगी, उसी प्रकार उन कल्याणकारी वचनामृतों को सुनने-पढऩे और उन्हें दोहरा देना पर्याप्त नहीं। इससे लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब इन वचनों को पढ़ तो लिया, सुन तो लिया, पर न सेवा, भाव, आया न परोपकार किया न किसी की पीड़ा को दूर किया, बल्कि उल्टे बेईमानी की, झूठा व्यवहार किया, विश्वासघात किया, किसी की हकतल्फी की तो इन वचनों को, उपदेशों को पढऩे-सुनने का क्या लाभ, बल्कि ऐसा करने वाले अधिक पाप के भागी हो गये।
जो अज्ञानी है, उसे ज्ञान नहीं वह गलती कर रहा है, तो कम पाप का भागी होगा, किन्तु जो जानता है कि मैं क्या कर रहा हूं, वह फिर भी पाप करे तो वह महापापी होकर प्रभु के महादंड का भागी होगा।