यदि आदमी में सहनशक्ति का अभाव है तो समाज में अशान्ति का साम्राज्य होना निश्चित है। शान्ति की कल्पना करना ऐसे समाज में व्यर्थ है। यदि एक-दूसरे को हेय दृष्टि से देखा जायेगा, घृणा और द्वेष, ईष्र्या करेंगे, तो आपस में दूरियां बढती जायेगी, जबकि शान्ति के लिए आपसी सौहार्द और प्रेम अनिवार्य है। व्यवस्थित दिनचर्या के लिए शान्त और स्वस्थ वातावरण नितांत आवश्यक है। अशान्ति का कारण है कि हम परमात्मा से दूर होते जा रहे हैं।
आदमी धार्मिक न होकर धर्म का दिखावा अधिक कर रहा है। धार्मिक स्थलों में भीड़ देखकर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि आदमी धर्म की ओर अधिक प्रवृत्त हो गया है, जबकि उसका कारण उसके मन की अशान्ति है। धर्म की लम्बी-लम्बी व्याख्याएं की जाती हैं, किन्तु धर्म के मर्म को कोई समझना ही नहीं चाहता। आप अपने साथ दूसरों के द्वारा कैसा व्यवहार पसंद करते हैं और कैसा व्यवहार ना पसंद करते हैं, स्वयं चिंतन करिए और परमात्मा को साक्षी करके आप आज से ही शपथ ले कि मैं किसी के साथ वह व्यवहार नहीं करूंगा, जो मुझे अपने साथ होना पसंद नहीं, आप आज से ही किसी के साथ कपट नहीं करेंगे।
किसी के साथ हकतल्फी नहीं करेंगे। दूसरों की बहू-बेटियों को समदृष्टि से देखेंगे। चोरी नहीं करेंगे, किसी जीव को सतायेंगे नहीं, उसे किसी प्रकार कष्ट नहीं देंगे। आपका प्रत्येक कार्य सत्य पर आधारित होगा, ऐसा होगा तो आप सच्चे धार्मिक और प्रभु भक्त हो जायेंगे। चहुंओर शान्ति और प्रेम का साम्राज्य होगा।