संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुख चाहता है, प्रसन्नता चाहता है और इन्हें प्राप्त करने के लिए दिन-रात योजनाएं बनाता रहता है। योजनाओं के आधार पर पुरूषार्थ भी करता है। इन सब कार्यों से सुख और प्रसन्नता मिलती है, इसमें कोई भी संदेह नहीं है, परन्तु यह सब क्षणिक है, कुछ देर की है।
यह प्रसन्नता निम्र स्तर की है, इसलिए कुछ समय बाद आदमी इनसे ऊब भी जाता है। इससे उत्तम या उच्च स्तर की प्रसन्नता प्राप्त करना चाहते हो तो अपने भीतर से प्राप्त करें। ऐसी प्रसन्नता और सुख मिलते कैसे हैं? यह जानना अनिवार्य है वह मिलती है दूसरों को सुख देने से। यदि आप दूसरों को सुख देते हैं अथवा अन्य किसी प्रकार से दूसरों की सहायता करते हैं, उनकी सेवा करते हैं, योग्य पात्रों को दान देते हैं तो आपकी इस परोपकार की क्रिया से दूसरे लोगों को सुख मिलता है, तब ईश्वर आपको आपके अन्दर से मन से उत्तम सुख प्रदान करता है।
इसी का नाम उत्तम प्रसन्नता है, जो लम्बे समय तक बनी रहती है। इससे व्यक्ति के मन को संतोष और तृप्ति का अनुभव होता है, जो बाह्य इन्द्रियों से मिलने वाले रूप रस गन्ध आदि विषयों के क्षणिक सुख में प्राप्त नहीं हो पाता।