जैसे प्रात:काल सूर्योदय होता है और हर क्षण सूर्य अस्तांचल की ओर बढ़ता रहता है वैसे ही यह शरीर रूपी सूर्य माता के उदर से जन्मोदय होकर हर क्षण मृत्युरूपी अस्ताचंल की ओर बढ़ता रहता है। जैसे सूर्य की प्रात: मध्यान्ह और सायंकाल की प्रतीति होती है वैसे ही इस शरीर में बाल तरूण तथा वृद्धावस्था की प्रतीति होती है।
जैसे सूर्य अदृश्य, अव्यक्त अंधकार से व्यक्त होता है वैसे ही शरी अदृश्य अव्यक्त गर्भाधान से दृश्यमान व्यक्त होता है। जैसे सूर्य सायंकाल (सूर्यास्य) के पश्चात पुन: अव्यक्त हो जाता है वैसे ही यह शरीर भी मृत्यु के पश्चात पुन: अव्यक्त अदृश्य हो जाता है। जैसे सूर्य के द्वारा दिन के बाद रात्रि और रात्रि के बाद दिन का आवागमन होता रहता है वैसे ही जीवों के शरीर का जन्म और जन्म के बाद मृत्यु तथा मृत्यु के बाद जन्म का चक्र चलता रहता है।
जैसे सूर्य प्रलय के पश्चात अगली सृष्टि तक अदृश्य रहता है वैसे ही जीव अपने शुभ कर्मों से मोक्ष प्राप्त कर आवागमन से मुक्त हो जाता है। एक निश्चित अवधि (जो हर जीव की अलग-अलग होती है) के पश्चात फिर शरीर धारण कर दृश्यमान हो जाता है। नश्वर तो यह शरीर है, जबकि आत्मा अविनाशी है।