ऋषियों ने इस मानव देह को कंचन काया भी कहा है और चलता फिरता मल का भांडा भी कहा है अर्थात कत्र्तव्य पारायण व्यक्ति का शरीर कंचन काया और कत्र्तव्य विमुख व्यक्ति का शरीर मल का भांडा है। मानव योनि प्राप्त करके जो अपने वास्तविक स्वरूप आत्मा और परमात्मा को जानकर आत्म साक्षात्कार करके देह का त्याग करता है तो उसकी देह ही कंचन काया है।
अन्य सभी तो मल-मूत्रादि से भरे चलते-फिरते मल के भांडे ही तो हैं। अनेक जन्मों से बिगड़ी हुई जीवन यात्रा आज बन सकती है, किन्तु यदि आज भी बिगड़ी तो आगे बनने की आशा कहां है।
सार यह है कि इस नश्वर देह से ममता अहंता का त्याग करके ऐसी व्यक्ति से ममता करो, जिसमें आपकी अहंता ममता सदैव स्थिर रहे। इस क्षणभंगुर देह में अहंकार क्यों करते हैं। परम सत्य को जाने बिना तो कल्याण सम्भव ही नहीं है।