Sunday, April 27, 2025

अनमोल वचन

जल के दो बड़े स्रोत हैं नदी और समुद्र। दोनों के जल के स्वाद में अंतर है। नदी का जल मीठा और समुद्र का खारा होता है। क्या कभी विचार किया है कि यह अंतर क्यों हैं?

क्योंकि नदी प्रवाह में होती है। उसके प्रवाह के मध्य जो आता है नदी अपने जल से उसे तृप्त करने का प्रयास करती है फिर वह चाहे मनुष्य हो, पशु-पक्षी हो अथवा कृषकों की फसलें हों। वह वितरण में विश्वास करती है। इसलिए उसका जल मीठा है।

समुद्र स्थिर है, प्रवाह रहित है, वह लेता रहता है। दूसरे स्रोतों को अपने में समेटता रहता है। वितरण उसके संस्कार में नहीं है। इसीलिए उसका जल खारा है।

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यदि हमारे भीतर भी निरन्तरता, सक्रियता एवं वितरण की प्रवृत्ति रहेगी, तो हम भी आदरणीय बने रहेंगे तथा हमारे सम्पर्क का जिस-जिस को लाभ मिलता रहेगा वह भी निहाल होता रहेगा। इसलिए जो हमारे पास है, वह ज्ञान के रूप में है, धन के रूप में है, पदार्थ या संसाधनों के रूप में है, उसका लाभ दूसरों को भी मिलते रहना चाहिए। आप में भी स्वच्छता, निर्मलता तथा मधुरता बनी रहेगी अन्यथा आपका स्वभाव भी समुद्र की तरह खारा हो जायेगा।

इसलिए मन में सदैव यह भावना रखिए कि मेरे चिंतन में मृदुलता रहे, स्वभाव में मधुरता रहे, वाणी में रस रहे, व्यवहार में शालीनता रहे। हमारे पास जो है, उसका लाभ दूसरों को भी प्राप्त होता रहे।

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