परमात्मा ने जीव को मानव योनि में भेजकर अनन्त कृपायें की हैं। उसे असीम शक्ति और असीम सामर्थ्य प्रदान किया है। समाज को उससे अनेक अपेक्षाएं भी रहती हैं। हमें उन अपेक्षाओं पर प्रतिबद्धता के साथ खरा उतरना है। तभी मानव जीवन की सार्थकता है। यह जीवन मात्र अपने लिए ही नहीं है, महानता महान कर्मों से ही प्राप्त होती है, महान कार्य वे ही होते हैं, जो परोपकार और परहित के लिए समर्पित हो। हमारे कर्म जितने महान होंगे, हम उतने ही महानता की ओर अग्रसर होंगे। यही हमारे जीवन की वास्तविक पूंजी होगी। धन, विद्या, बल का अभिमान न करके दूसरों की सेवा करो, उनके काम आओ। यह तभी कर पाओगे, जब अहंकार का विसर्जन कर दोगे। जिन मन्द बुद्धियों, निर्धनों, निर्बलों के कारण आप विद्वान, धनवान और बलवान बने हो, उनकी सेवा करो। अहंकार के वशीभूत होकर उनकी उपेक्षा करोगे तो सम्मान से वंचित ही रहोगे।