हमारे पुरूषार्थ करने के पश्चात जो प्रभु ने दिया है उसे प्रभु की कृपा मानकर स्वीकार करे तो प्रसन्नता आयेगी। प्रकृति के निकट बैठने से प्रसन्नता आयेगी, परन्तु कर्म से जी चुराकर नहीं बैठना। आलसी व्यक्ति को न लक्ष्य प्राप्त होता है न ही वह प्रसन्न रह सकता है। कर्म को प्रथम स्थान देना ही होगा। जीवन में सदा गुनगुनाते रहो, खिले रहो।
प्रसन्नता एवं उल्लास तप भी है और भक्ति भी है प्रसन्नता से प्रभु के द्वार जाओ और उसकी अनंत-अनंत कृपाओं के लिए कृतज्ञता प्रकट करो। उल्लासमय प्रसन्नता जीवन के शुभ संकल्पों को पूर्ण कराने में परम सहायक है। प्रसन्नता और उल्लास को जिसने जीवन में उतार लिया है वह व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य अवश्य पूरा करेगा। प्रसन्नता पाने के लिए व्यवस्था को सुव्यवस्था में बदलना होगा। पारिवारिक सामाजिक परिस्थितियां संतुलित रहेगी, जिससे आनन्द की प्राप्ति होगी। किसी की कड़वी बात सुनकर निंदा चुगली सुनकर आवेश में न आये।
मस्तिष्क को ठंडा रखो। शान्तिपूर्वक विचार कर निर्णय लेकर व्यवहार करे। मधुर भाषी एवं विनम्र बने रहना भी सफलता की कुंजी है। दुष्ट भी आपके सद्व्यवहार से समर्पण कर देगा। प्रसन्न रहने की ये कलाएं सबको सीखनी चाहिए।