संसार में ऐसे लोग विरले ही होते हैं जो भगवान से दुख मांगते हैं। उनका मानना यह है कि सांसारिक वस्तुएं मनुष्य कर्मानुसार ही भोगता है, परन्तु हमें उन वस्तुओं को प्रभु का प्रसाद मानकर ही भोगना चाहिए। वे अपनी नहीं भगवान की अमानत है। इस प्रकार अभाव कष्टों और दुखों को भी भगवान की कृपा अथवा प्रसाद ही समझना चाहिए। जिसे हम दुख या कष्टों का समय मानते हैं उन दिनों में प्रभु की याद अधिक आती है। महाभारत का एक दृष्टान्त है जब भगवान कृष्ण द्वारिका आने लगे तो उन्होंने कुन्ती से पूछा कि बुआ तुम्हें क्या चाहिए, क्योंकि मैं द्वारिका जा रहा हूं। उत्तर में कुन्ती ने कहा ‘केश्व मुझे दुखों का वरदान दे दो, क्योंकि दुख में तुम्हारी याद आयेगी और मुख से तुम्हारा ही नाम निकलेगा। आप भी कष्टों दुखों और अभावों को भगवान की कृपा ही माने, क्योंकि कष्ट के दिनों में आदमी प्रभु का स्मरण निरन्तर करता है और अनिवार्य रूप से करता है।