Sunday, May 11, 2025

अनमोल वचन

भक्ति अर्थात प्रभु की निरन्तर अनुभूति। प्रभु को अन्य वस्तुओं की तरह देख तो नहीं सकते, किन्तु अनुभव अवश्य किया जा सकता है, जिस प्रकार फूल की खुशबू हवा की शीतलता, श्वांस के साथ भीतर जाती प्राण वायु दिखती नहीं, परन्तु उसके होने का बोध होता है। ठीक उसी प्रकार प्रभु की उपस्थिति की अनुभूति भी होती है। परमात्मा कण-कण में विद्यमान है, व्याप्त है। जिस प्रकार पर्वत की ऊंचाई, वायु की गति, सागर की गहराई, नदियों का जल प्राणी मात्र के लिए है उसी प्रकार परमात्मा की प्रत्येक स्थान पर उपस्थिति सभी के लिए है, छोटा हो या बड़ा, गोरा हो या काला हो, धनवान हो अथवा निर्धन हो, इसी देश का है या अन्य देश का उसकी व्यापकता सभी के लिए समान सत्य है। भक्ति बाहरी खोज का विषय नहीं यह तो अन्तर की यात्रा है। आपके अन्तस्थल में प्रभु के प्रति प्रेम जिस समय उत्पन्न हो जायेगा, भक्ति का आरम्भ वहीं से हो जायेगा। धर्म ग्रंथों का पालन ज्ञान चिंतन, आध्यात्मिक विभुतियों की संगति से इसमें वृद्धि हो सकती है, परन्तु ये भक्ति के जन्मदाता नहीं हो सकते। भक्ति का प्रवाह तो भीतर से फूटता है।

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