सम्बन्ध पारिवारिक अथवा सामाजिक हमारे अपने सम्बन्धों में सत्य निष्ठा हो। जिनसे हम प्रेम करते हैं यदि उनसे झूठ बोलते हैं तो हमारा प्रेम सच्चा, नहीं हो सकता। सद्व्यवहार नम्रता से आरम्भ होगा। नम्रता का अर्थ ऐसी भावना के साथ जीना है कि हम सब एक सृजन हार के अंशक हैं। वह सृजन हार जो इस अखिल ब्रह्मांड का पिता है। उसके बिना हम कुछ भी नहीं। हम सब प्रभु के चरणों में तुच्छ बालक के समान है। हम सब बराबर है न कोई छोटा न कोई बड़ा न गरीब न अमीर। इसीलिए हमारा व्यवहार भी बराबरी का हो, तभी आपस में प्रेम और सत्यनिष्ठा बने रह सकते हैं। हम सब आत्मा है, प्रभु के अंश हैं, उसकी ज्योति की किरणें हैं। हम सब आत्मा है, प्रभु के अंश है, उसकी ज्योति की किरणें हैं। कोई भी ऐसी व्यवस्था जो हमें एक-दूसरे से अलग करती है, वह मात्र बाहरी व्यवस्था है, जो कुछ भी हमारे पास है वह प्रभु की कृपा है इसलिए हमें सदा-सदा ही उसका कृतज्ञ रहना चाहिए। यह तभी होगा, जब हम नम्र होंगे। नम्रता के द्वारा हम दूसरों के गुणों का सम्मान करना सीखते हैं। स्वयं के गुणों के लिए प्रभु का आभार प्रकट करते हैं, साथ अपने दोषों पर भी दृष्टि जाती है, जिसके आधार पर उनका त्याग करते हैं, नम्रता द्वारा हम उस घृणा और कट्टरता को समाप्त कर सकते हैं, जो अलग-अलग समाजों के बीच फैली हुई है।