जब तक इंसान के विचार केवल दुनियादारी पर ही आधारित रहेंगे, मानवता का अभाव ही रहेगा।
हमारा जीवन स्वार्थों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहेगा। हमारे ग्रंथ, ऋषि-मुनि, मनीषी हमें अनन्तकाल से समझाते आ रहे हैं कि जीवन क्षणभंगुर है, पता नहीं कब अंत हो जाये। हमें यह अहसास हो ही नहीं रहा कि इस रूप में यह यात्रा सदैव रहने वाली नहीं है। यहां मिलने वाली शक्तियां, सत्ता, धन-दौलत, सौंदर्य यहीं धरा रह जायेगा। समय के साथ सुन्दरता कुरूपता में बदल जाती है। आज तख्त है, कल तख्ता मिल सकता है। आज सत्ता है कल अधीनता मिल जाती है।
इंसान को थोड़ा ठहरकर शांत मन से यह भी सोचना चाहिए कि वह किधर जा रहा है। उन चेतावनियों की ओर ध्यान दें, जो हमें हमारे कल्याण के लिए दी गई। इंसान उनकी अनदेखी करता रहा है।
जैसे कबूतर को बिल्ली से बचाव की सलाह दी गई, कबूतर ने आंखें बंद कर ली। बिल्ली ने कोई लिहाज नहीं किया। इसी प्रकार इंसान भी सच्चाई से आंखे मूंदे बैठा है। आंखे मूंदने से प्रभु की व्यवस्था नहीं बदल जायेगी। तुझे स्वयं को ही बदलना होगा। अपने कल्याण के मार्ग को पकड़ना होगा।