Saturday, November 9, 2024

हम अपने कर्तव्यों का कितना पालन करते हैं?

किसी महापुरूष ने कहा है कि यदि हर व्यक्ति अपने आप को सुधार ले तो यह धरती स्वर्ग बन जाएगी। हर व्यक्ति यदि अपने कर्तव्य का पालन करे तो संसार सुन्दर बन जाएगा। कर्तव्य परायणता जीवन का अभिन्न अंग है। जीवन संघर्ष में सफल होने का महा मन्त्र है। यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करता है तो वह समझे कि सफलता का दिव्य अस्त्र उसके पास है।
हमारी उन्नति का एक मात्र उपाय  यह है कि जीवन के हर क्षेत्र में हम अपना काम पूर्ण लगन  व मेहनत से करें। सबसे पहला कर्तव्य अपने शरीर को स्वस्थ रखना है। फिर माता-पिता के प्रति आदर की भावना,  तथा राष्ट्रधर्म निभाना। मातृभूमि का कर्ज सबसे बड़ा कर्ज माना जाता है। अत: अपना कर्तव्य पूरा करें और राष्ट्र की उन्नति में हाथ बटायें।
प्रकृति और समाज ने जो कार्य हमें सौपें है उसे पूर्ण करना हर व्यक्ति का परम कर्तव्य बन जाता है।
अपना कर्तव्य पूर्ण करने में एक अलग ही आनंद और सन्तुष्टि का भाव होता है। चरित्र बल द्वारा ही कर्तव्य परायणता सम्पूर्ण हो पाती है।
भारत हमारी मातृभूमि, कर्म भूमि है। इसे सारे राष्ट्र, विश्व गुरू मानते  रहे हैं। इसे सोने की चिडिय़ा  या स्वर्णभूमि भी कहा जाता है। राष्ट्र प्रेम तो एक भावना है जिसके अंतर्गत हम देश के लिए सर्वस्व लुटा मिटा देने की भावना रखते हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि राष्ट्र को हम क्या दे रहे हैं जबकि राष्ट्र की मिट्टी के हम कर्जदार हैं। हमें धर्म, जाति के भेद से ऊपर उठकर मानवता से प्यार करना चाहिए। मनुष्य ने यदि मनुष्यता छोड़ दी तो वह मनुष्य न रह कर पशु कहलाएगा।
राष्ट्र है तो हम  है राष्ट्र नहीं तो हमारा अस्तित्व भी नहीं रहता। ईश्वर एक है और वह एकता चाहता है। जब भी कभी भारत में राष्ट्रीय एकता का खंडन हुआ है तो विदेशी आक्रमण से हमारी स्वतंत्रता को खतरा हुआ है।
गुलामी की जंजीरें न जाने कितने बलिदानों, की आहुति देकर टूटी है। क्रांतिकारियों का जज्बा  और त्याग-हमें नहीं भूलना चाहिए। उनके त्याग का मूल्य यही है कि आपस में न लड़ झगड़कर विदेशी ताकतों को भारत पर बुरी नजर डालने से रोके।
भारत सभ्यता और संस्कृति का सदा ही स्रोत रहा है। धर्म, दर्शन सिद्धांत इसकी मर्यादा रही है। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है-दौरे जहां हमारा। चरित्र की उज्जवलता मातृभूमि की धरोहर है। आज के हिंसा के युग में अहिंसा का स्थान नगण्य हो चुका है। वास्तविक जीवन टीवी और सिनेमा मेें प्रत्यक्ष रूप सं जनता के सामने रखा जाता है तो उसका परोक्ष प्रभाव आने वाली पीढ़ी पर पड़ता है। बाल मन पर भी टीवी और सिनेमा का प्रभाव पड़ता है।
शास्त्र कहते हैं कि अकारण किसी निरीह प्राणी को क्षति पहुंचाना पाप है। किसी के भी मन वचन कर्म द्वारा कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। क्रोध को क्षमा से, विरोध को अनुरोध से समाप्त कर देना चाहिए। घृणा को दया द्वारा समाप्त करें। आपसी द्वेष को प्रेम द्वारा नष्ट किया जा सकता है।
आपसी सौम्य व्यवहार, मधुर वचन द्वारा प्रेम भाव नापा जा सकता है। बौद्ध और जैन युग में अहिंसा परमो धर्म था। मुगलों के आगमन से संत युग आरम्भ हुआ। नानक, तुलसी, मीरा, सूर आए और अहिंसा की ज्योति प्रज्वलित रखी।
गांधी जी की अहिंसा भी कुछ कम नहीं थी। भारत विभाजन के दौरान अहिंसा के झंडे तले हिंसा का नंगा नाच हुआ। इसमें संदेह नहीं कि अहिंसा शांति बनाये रखती है।
दिल में उमंग, उत्साह बनाए रखती है। परंतु जब कोई दूसरा व्यक्ति या राष्ट्र आपको हिंसात्मक ढंग से तंग करे तो हिंसा का दामन पकडऩा ही पड़ता है। आत्मरक्षा के लिए हिंसा करना पुण्य है। अकारण दूसरे जीव को तंग करना पाप है।
आज के युग में झूठ, बेईमानी, भ्रष्टाचार, अराजकता, बेरोजगारी इतनी बढ़ चुकी है कि समाज में शांति पूर्वक जीना मुश्किल हो चुका हैै। प्रतिदिन समाचार पत्र-हिंसात्मक वारदातों से भरे पड़े हैं। भ्रष्टाचार अवनति के मार्ग पर राष्ट्र को ले जा रहा है।
आज नैतिकता गर्त में जा चुकी है अपने हित के लिए या थोड़े से लाभ के लिए किसी की गर्दन भी काटनी पड़े तो लोग चूकते नहीं। आज के युग में जीना भी मुश्किल हो चुका है। फिर भी मुश्किलों से लडऩा मानव का कर्तव्य है। मुश्किलें ही जीना सिखाती हैं।
जिस राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र उच्च होता है वे उन्नति के मार्ग पर चलते हैं। सम्मान, वैभव विकास की सीढ़ी चरित्र बल को माना गया है।  कर्तव्य निभाने से चरित्र का निर्माण होता है।
संसार चढ़ते सूर्य के सामने नतमस्तक होता है। जो जीता उसे   ही ही सिकन्दर माना जाता है। इतिहास में उस मानव का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है जो संसार में आकर चरित्र बल द्वारा अपना कर्तव्य पूरा करके संघर्ष मय जीवन को सुरूचिपूर्ण ढंग से जीता है।
बिना पेंदी के लोटे को कोई नहीं पूछता। जिसका आत्म बल ऊंचा है उसका सम्मान सभी करते हैं। राष्ट्र का आत्म बल उसके नागरिकों के उच्च चरित्र से ही बनता है। यदि हम सुधरेंगे जग-सुधर जाएगा।
विजेन्द्र कोहली गुरूदासपुरी -विभूति  फीचर्स

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय