भोपाल । मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी सफलता ने विरोधी ही नहीं भाजपा के नेताओं को भी चौंका दिया है। इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद तो भाजपा के नेता भी नहीं कर रहे थे। इस सफलता की रोचक कहानी के किरदार बूथ, यूथ, समन्वय और एकजुटता रही, जिससे अधिकांश लोग अनजान हैं।
राज्य के विधानसभा चुनाव में यूथ, बूथ, समन्वय और एकता भाजपा की बड़ी ताकत बन गई। एक तरफ जहां राज्य के संगठन ने बूथ स्तर को मजबूत किया तो चुनाव में युवाओं पर बड़ा दांव लगाया। वहीं राज्य तथा राष्टीय नेतृत्व के बीच समन्वय बेमिसाल रहा और एकता बंद मुटठी की तरह रही।
राज्य के विधानसभा चुनाव से पहले मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा और रोचक होने की संभावना जताई जा रही थी। तमाम सर्वे से लेकर जमीनी स्तर से आई रिपोर्ट ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी थी। इन स्थितियों में भाजपा को बाजी पलटना आसान नहीं लग रहा था, मगर राष्ट्रीय नेतृत्व की रणनीति और राज्य के संगठन की कार्यकर्ताओं के बीच सक्रियता उसकी सबसे बड़ी ताकत थी।
राज्य के संगठन की रणनीति पर गौर किया जाए तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने बूथ विस्तारक अभियान से ही जमीनी कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया और केंद्र तथा राज्य सरकार की योजनाओं से लाभार्थी को लाभ पहुंचाने की हर संभव कोशिश की। इसके बावजूद पार्टी को राज्य की सरकार के खिलाफ संतोष का फीडबैक मिलता रहा।
ऐसी स्थिति में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष शर्मा ने हर घर तक संपर्क बनाने की जिम्मेदारी कार्यकर्ताओं को सौंपी। संगठन ने अपने स्तर पर फैसले लिए और सत्ता से जुड़े लोगों को दूर रखा। साथ ही जिला, मंडल व बूथ स्तर तक की समितियों से जुड़े पदाधिकारियों को जरुरत के मुताबिक तमाम सुविधाएं मुहैया कराई गई।
जमीनी स्तर से आए फीडबैक को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व और प्रदेश का संगठन चिंतित था, इसलिए उसने एक कारगर रणनीति पर अमल शुरू किया। सबसे पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य की चुनावी रणनीति की कमान खुद अपने हाथ में संभाली और अपने दो प्रतिनिधि केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव व अश्विनी वैष्णव को राज्य में तैनात किया।
इन दो बड़े नेताओं की राज्य में मौजूदगी और राज्य इकाई की कार्यकर्ता के बीच गहरी पैठ ने स्थितियों को बदलने के लिए जोर लगाया। चुनाव से लगभग पाच माह पहले तक यही अनुमान लगाया जा रहा था कि राज्य में कांग्रेस बढ़त हासिल कर सकती है और भाजपा को सरकार से बाहर होना पड़ सकता है। यही सबसे बड़ी चिंता पार्टी हाई कमान की थी।
ऐसी स्थिति में अमित शाह के लगातार राज्य के दौरे हुए और उन्होंने संभाग स्तर के प्रवास में न केवल स्थानीय नेताओं को हिदायत दी बल्कि अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने के लिए भी मजबूर कर दिया।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि अमित शाह ने जब संभागीय स्तर का दौरा किया और वहां के नेताओं से संवाद किया तो स्थितियां स्पष्ट होने लगी और शाह ने तो राज्य के नेतृत्व को यह भी बता दिया कि किस इलाके में पार्टी की क्या स्थिति है और उसके बाद ही कमजोर कड़ियों को मजबूत करने का अभियान चलाया गया।
सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा गया। प्रधानमंत्री से लेकर अन्य नेताओं के दौरों का खाका खींचा गया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में भाजपा को सत्ता में बने रहना आसान नहीं था, मगर राज्य के संगठन की लगातार सक्रियता और कार्यकर्ताओं को अहमियत दिए जाने का असर यह हुआ कि एंटीइनकंबेंसी को प्रोइनकंबेंसी में बदल दिया गया।
पार्टी ने नकारात्मक प्रचार का सहारा नही लिया, युवाओं पर दांव लगाया, बूथ को मजबूत किया, बेहतर समन्वय के साथ एकजुटता को कमजोर नहीं पड़ने दिया। लाडॉली बहना योजना का भी असर पड़ा। इसी ने भाजपा की जीत की कहानी लिख दी।