Thursday, January 23, 2025

सहारनपुर-कैराना पर उम्मीदवारों ने चयन पर माथापच्ची जारी, सुरेश राणा, वीरेंद्र, इकरा,जसवंत सैनी भी दावेदारों में शामिल

सहारनपुर।(गौरव सिंघल) 18 वीं लोकसभा के अप्रैल-मई के करीब होने वाले चुनावों को लेकर उत्तर प्रदेश में अभी गठबंधनों की स्थिति साफ नहीं हुई है लेकिन प्रमुख दलों ने अपने उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा अपने उम्मीदवारों और जीत दोनों को लेकर काफी आश्वस्त है जबकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी दोनों स्तर पर चिंतित और उलझन में है।

सूबे के प्रवेश द्वार और लोकसभा सीट नंबर-एक सहारनपुर एवं सीट नंबर-दो कैराना पर समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवारों को लेकर मंथन किया है। सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव दोनों में से एक सीट पर मुस्लिम और एक सीट पर हिंदू उम्मीदवार उतारना चाहते हैं। उनकी परेशानी यह है कि उनके पास दोनों सीटों पर मुस्लिम दावेदार थोड़ी मजबूत स्थिति में हैं और उनके दावे भी भारी भरकम हैं। हिंदू उम्मीदवारों में सपा का दांव गुर्जर बिरादरी पर है वहीँ बीजेपी कैराना में गुर्जर और सहारनपुर में ठाकुर या सैनी पर भी दांव खेल सकती है।

कैराना सीट पर सपा से चौधरी रूद्रसैन अपनी दावेदारी जता रहे हैं। अभी हाल ही में उन्हें समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया है। चौधरी रूद्रसैन दिवंगत गुर्जर नेता चौधरी यशपाल सिंह के बेटे हैं। चौधरी यशपाल सिंह की स्थिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जरों में बहुत मजबूत थी। लेकिन दिक्कत यह है कि यशपाल सिंह के जाने के बाद उनका कोई भी बेटा किसी भी चुनाव में सफलता प्राप्त नहीं कर पाया है। गुर्जरों में जो बड़ा बदलाव आया है वह उनका भाजपा की ओर रूझान हो जाना है।

सहारनपुर लोकसभा सीट पर गुर्जर बिरादरी के ही मनोज चौधरी भी सपा की ओर से मुख्य दावेदारों में हैं। जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में दिग्गज गुर्जर नेता चौधरी यशपाल सिंह भी चुनाव हार गए थे। ऐसे में अखिलेश यादव यदि इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार का चयन करते हैं तो वे राजनीतिक दृष्टि से ज्यादा मुफीद रह सकता है। इंडिया गठबंधन की स्थिति में इस सीट पर कांग्रेस भी अपनी दावेदारी ठोक सकती है , बसपा से फिर कांग्रेस में आये इमरान मसूद भी इस सीट पर गठबंधन से चुनाव लड़ने के लिए प्रयासरत है।

बताया जाता है कि सहारनपुर सीट पर अखिलेश यादव की पहली पसंद मौजूदा सांसद हाजी फजर्लुरहमान कुरैशी हैं। जो पिछले चुनाव में सपा के समर्थन से बसपा के टिकट पर चुने गए थे। उन्हें 514139 वोट मिले थे। जबकि 2014 में जीते भाजपा के उम्मीदवार राघव लखनपाल शर्मा को 491722 वोट मिले थे और कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद को 207068 वोट मिले थे। सहारनपुर जिले में 38 से 40 फीसद तक मुस्लिम और 20 से 22 फीसद तक दलित मतदाता है। ये स्थितियां भाजपा के लिए अनुकूल नहीं है। इसलिए अनुकूल हालात में विपक्षी दल दोनों सीटें जीतने का मंसूबा पाले हुए है। लेकिन विजयी उम्मीदवार का चयन करना उनके लिए जीत दर्ज करने से भी ज्यादा मुश्किल है।

कैराना सीट पर कैराना के सपा विधायक चौधरी नाहिद हसन की बहन इकरा हसन मजबूत दावेदार हैं।  इस सीट पर रालोद मजबूती से दावेदारी कर रहा है जिसमे पूर्व सांसद अमीर आलम के बेटे पूर्व विधायक नवाजिश आलम भी एक प्रमुख उम्मीदवार है। कैराना सीट पर इकरा हसन को उनकी माँ तबस्सुम हसन की तरह लोकदल के चुनाव चिन्ह पर भी गठबंधन से चुनाव लड़ाया जा सकता है।

सपा के लिए माकूल बात दोनों सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारना हो सकती है। लेकिन नेतृत्व ऐसे में ध्रुर्वीकरण होने से भी आशंकित है। इसी उलझन से सपा नेतृत्व को पार पाना है।चुनावों में यह देखने में आया है कि मुस्लिम उम्मीदवारों को मुसलमान जिस जज्बे और जुनून से वोट करता है वह धर्मनिरपेक्ष दलों के हिंदू उम्मीदवारों को उस अनुपात में वोट नहीं डालता है। यह बात इस तथ्य से उजागर हो जाती है कि 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सहारनपुर की बेहट और सहारनपुर देहात दोनों सीटों पर सपा के मुस्लिम उम्मीदवार क्रमशः उमर अली खान और आशु मलिक आसानी से जीत गए जबकि भारी मुस्लिम वोटों वाली सहारनपुर शहर और देवबंद सीट पर उसके दोनों उम्मीदवार क्रमशः संजय गर्ग और कार्तिकेय राणा कड़े मुकाबले में भाजपा उम्मीदवारों से चुनाव हार गए। लोकसभा चुनाव 2019 में भी सहारनपुर लोकसभा सीट पर बसपा के सपा समर्थित उम्मीदवार फजर्लुरहमान  इमरान मसूद के 207000 वोट लेने के बावजूद भाजपा के राघव लखनपाल शर्मा को आसानी से हराने में सफल हो गए।

 कैराना सीट पर भी मुस्लिम उम्मीदवार हिंदू उम्मीदवार की तुलना में सपा के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है। सपा की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यदि गठबंधन में बसपा शामिल नहीं रहती है तो वह सपा के हिंदू उम्मीदवारों के सामने मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर उनका खेल खराब करेगी। जिसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। यही वह उलझन है जिससे अखिलेश यादव को बाहर आना है। अभी वह पूरी तरह से पसोपेश में हैं। यहां यह कहना भी सही होगा कि बसपा का विपक्षी गठबंधन में आना भाजपा के लिए भी गंभीर चुनौती पेश करेगा।

अखिलेश यादव के लिए पश्चिम में राहत की बात यह है कि उनके साथ जाट नेता जयंत चौधरी है। इसका फायदा उन्हें कैराना लोकसभा सीट पर मिल सकता है। पिछले विधान सभा चुनावों में कैराना, शामली और थानाभवन सीट सपा और लोकदल ने जीती थी और गंगोह एवं नकुड़ सीट पर भाजपा मुश्किल से जीती थी। इसलिए आगामी लोकसभा चुनावों में यह तो तय है कि विपक्ष और भाजपा में सहारनपुर और कैराना दोनों सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।

कैराना लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व भाजपा के प्रदीप चौधरी करते हैं। जिन्हें पिछले चुनावों में 566961 वोट मिले थे। जबकि सपा-बसपा गठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम हसन 474801 वोट ही ले पाई थीं। कांग्रेस के हरेंद्र मलिक को 69355 हजार वोट मिले थे। इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार को पड़े वोट तबस्सुम हसन और हरेंद्र मलिक को मिले वोटों से भी ज्यादा थे। लेकिन मौजूदा हालात में स्थिति भाजपा के लिए आसान नहीं है। वजह जाटों का रूझान इस बार कुछ बदला हुआ है।

भाजपा सहारनपुर में राघव लखनपाल शर्मा पर और कैराना में प्रदीप चौधरी पर ही दांव लगा सकती है। वैसे कैराना सीट पर इस बार कांधला के वरिष्ठ बीजेपी नेता और विधान परिषद् सदस्य वीरेंद्र सिंह और पूर्व मंत्री बाबू हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह भी बीजेपी की तरफ से प्रमुख दावेदारों में शामिल माने जाते है।

यूपी में सहारनपुर ही एक ऐसी अकेली सीट है जहां से पंजाबी को टिकट दिया जा सकता है ऐसे में राघव लखनपाल शर्मा को पंजाबी होने का लाभ मिल सकता है। लेकिन भाजपा के लिए सीट जीतना पहला मकसद होगा। इसलिए वह सैनी या राजपूत दमदार उम्मीदवार भी उतार सकती है। उसके पास राज्यमंत्री जसवंत सैनी और पूर्व मंत्री ठाकुर सुरेश राणा भी उपयुक्त नाम माने जा रहे हैं।

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